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________________ ( 26 ) नहीं था, उसने परिस्थितिवश फारस में शिया धर्म ग्रहण कर लिया था। हुमायूँ की पत्नी हमीदाबानू बेगम जो कि फारस के शिया शेख अली अकबर जामी की पुत्री थी, हुमायूँ के समान वह भी संकीर्ण विचारों वाली नहीं थी । इस तरह अकबर के पूर्वज राजनैतिक आवश्यकताओं के कारण और अपनी महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए धार्मिक मामलों में उदार हो जाते थे । अतः वंश परम्परा से अकबर में धार्मिक कट्टरता आने के लिए कोई स्थान नहीं रह गया था । 4. अकबर के संरक्षक तथा शिक्षकों का उदार दृष्टिकोण अकबर का संरक्षक और प्रधान परामर्शदाता बेरामखां विद्वता और काव्य के गुणों से विभूषित था । लेखकों और विद्वानों का वह आश्रयदाता था, शियामत को मानने वाला था । बदायूँनी ने उसके बारे में लिखा है कि "बुद्धिमत्ता, उदारता, निष्कपटता, स्वभाव की अच्छाई, अधीनता और नम्रता में वह सबसे आगे था । वह दरवेशों का मित्र था और स्वयं बहुत धार्मिक और नेक इरादों का मनुष्य था । अकबर पर अपने संरक्षक के उदार विचारों का बहुत प्रभाव पड़ा । रामख ने ही अकबर की शिक्षा के लिए सुयोग्य, उदार विचार वाले सुसंस्कृत विद्वान अब्दुल लतीफ को नियुक्त किया । अब्दुल लतीफ अपने धार्मिक मामलों में इतना उदार था कि अपनी जन्म भूमि फारस में लोग उसे सुनी कहते थे और उत्तरी भारत में अधिकांश सुन्नी उसे शिया कहते थे। इतना महान होते हुए भी यद्यपि वह अकबर को पढ़ाने में असमर्थ रहा किन्तु उसने अकबर को जो सुलहए-कुल का पाठ पढ़ाया उसे अकबर आजीवन नहीं भूला । सुलह-ए-कुल अर्थात् सर्वजनित शान्ति के पाठ से अकबर ने समझ लिया था कि यदि साम्राज्य में शांति बनाये रखनी है तो धार्मिक विचारों को उदार बनाना होगा, धार्मिक भेद-भावों को मिटाना होगा और हिन्दुओं को भी मुसलमानों के समान साम्राज्य के उच्च पदों पर नियुक्त करना होगा । 5. राजपूत कन्याओं से विवाह और अकबर पर उनका प्रभाव राजपूतों के प्रति अकबर का व्यवहार किसी अविचारशील भावना का परिनाम नहीं था और न ही राजपूतों की धीरता, वीरता, स्वदेश भक्ति और उदारता के प्रति सम्मान का ही परिणाम था यह व्यवहार तो एक सुनिर्धारित नीति का परिणाम था और यह नीति स्वलाभ, ग्यायनीति के सिद्धान्तों पर आधारित थी । आरम्भ में ही अकबर ने यह अनुभव कर लिया था कि उसके मुसलमान अनुयायी 1. अलबदायूनी अनुदित डब्ल्यू. एच. लॉ. भाग 2 पृष्ठ 265 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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