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________________ ( 23 ) 1. तत्कालीन अशांति के निवारण के लिए हिन्दओं के सहयोग की जरूरत __ जब अकबर का राज्यारोहण हुआ तब सारा देश विभिन्न स्वतन्त्र राज्यों में विभक्त था । काबुल का क्षेत्र उस के सौतेले भाई मिर्जा हाकिम के नेतृत्व में लगभग स्वतन्त्र हो चुका था। बदख्शों में अकबर का चचेरा भाई सुलेमान मिर्जा स्वतन्त्र शासक था। उम्र में बड़ा होने के कारण वह स्वयं को तैमूरी राज्य का दावेदार समझता था । कन्धार सामरिक दृष्टि के महत्व का होने के कारण फारस के राजा की दृष्टि उस पर लगी हुई थी। सुलेमान मिर्जा ने काबुल आकर हकीम मिर्जा से मिलकर अकबर के विरुद्ध षड़यंत्र किया । हकीम मिर्जा का जो संरक्षक था, मुनीम खां वह अकबर के संरक्षक और प्रधानमन्त्री बैरामखां से वैमनस्य रखता था अकबर का एक प्रमुख सरदार शाह अबुलमाली खुल्लम-खुल्ला उसका विरोध कर रहा था। अकबर का प्रसिद्ध और उच्च पदाधिकारी तारदीबेग भी अकबर के संरक्षक बैरामखां से शत्रता रखता था। इस प्रकार सभी अमीर और स्वयं अकबर के प्रतिद्वन्दी ही उससे विश्वासघात कर रहे थे। जिस समय अकबर गद्दी पर बैठा उस समय उसकी आयु केवल तेरह वर्ष की थी इतनी छोटी अवस्था में उसके लिए सम्पूर्ण शासन भार को सम्भाल सकना असम्भव था । इसलिए उसे स्वामिभक्त संरक्षक की जरूरत थी। संरक्षक पद के चार दावेदार थे-~-मुनीम खां, शाह अबुलमाली, बैरामखां और तारदीबेग । इन चारों में से जब बरामखां को अकबर का संरक्षक नियुक्त कर दिया तो अन्य तीनों बैरामखों से कटुता और वैमनस्य रखने लगे । अकबर के तीन अफगान प्रतिद्वन्दी थे-सिकन्दर सूर, मुहम्मद आदिल और इब्राहीम सूर । ये तीनों दिल्ली सिंहासन के आकांक्षी थे। एक बात और भी थी कि भारत में अभी तक मुगलों को विदेशी समझकर हीनता तथा घृणा से देखा जाता था । अकबर के पूर्वज तैमूर की लूटमार, विध्वंसकारी कार्य और नशंस हत्याओं के कारण भारतीयों के दिलों में मुगलों के प्रति स्वाभाविक घृणा पैदा हो गई थी। बाबर और हुमायू ने भी कोई ऐसे लोकोपयोगी कार्य नहीं किये जिससे जनता का सौहाम्र उन्हें मिलता। गोड़वाना स्वतन्त्र राज्य था। गुजरात में मुसलमान सुल्तान मुजफ्फरशाह राज्य कर रहा था और मालवा में शुजात्त खां का उत्तराधिकारी बाजबहादुर स्वतन्त्र शासक था। इस प्रकार सारा देश स्वतन्त्र राज्यों में विभाजित था "स्मिथ का कहना अब अकबर कलानौर में तख्त पर बैठा तो यह नहीं कहा जा सकता था कि के पास कोई राज्य था। बैरामखां के नेतृत्व में जो छोटी सी सेना थी, उसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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