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द्वितीय अध्याय
अकबर की धार्मिक नीति
(अ) धार्मिक नीति को प्रभावित करने वाले तत्व
__ 15 अक्टूबर, रविवार सन् 1542 को जिस समय हमीदा बेगम ने अमरकोट के हिन्दू राजा राणाप्रसाद के घर अकबर को जन्म दिया, उस समय अकबर के पिता हुमायू अमरकोट से 20 मील दूर एक तालाब के किनारे डेरा डालकर इहरा हुआ था । जब तारदीबेगखां ने पुत्र जन्म की बधाई दी तो पुत्र प्राप्ति के आनन्ददायक अवसर पर भी हुमायू के मुख पर उदासीनता झलकने लगी । जौहर नामक अंगरक्षक ने इसका कारण पूछा ? हुमायूने तुरन्त चेहरे पर प्रसनता लाते हुए एक मिट्टी के बर्तन में कस्तूरी का चूरा किया और सबको बांटते हुए कहा "मुझे खेद है कि इस समय मेरे पास कुछ भी नहीं है इसलिए मैं पुत्र जन्म की खुशी के प्रसंग में आप लोगों को इस कस्तूरी की खुशबू के सिवाय कुछ भी भेंट नहीं कर सकता हूं। मुझे उम्मीद है कि जिस तरह कस्तूरी की सुगन्ध से पह मण्डल सुवासित हो रहा है वैसे ही मेरे पुत्र की यश रूपी सुगन्ध से यह पृथ्वी सुवासित होगी।"
जिस समय हुमायू की मृत्यु हुई, अकबर गद्दी पर बैठा, उसकी उम्र सिर्फ तेरह वर्ष की थी । तेरह वर्ष की उम्र क्या होती है ? लेकिन ईश्वर की महिमा देखो कि उसने साम्राज्य की नींव इतनी पक्की की कि पीढ़ियों तक भी वह में हिली यद्यपि वह लिखना-पढ़ना नहीं जानता था, लेकिन अपनी कीति के लेख ऐसी कलम से लिख गया कि कोलचक्र उन्हें घिस-घिस कर मिटाता है लेकिन जितना उनको घिसो उत्तना ही वे चमकते जाते है हो सकता है यदि उसके इत्तराधिकारी भी उसी मार्ग का अनुसरण करते तो आज भारत का इतिहास कुछ पौर ही होता।
यद्यपि अकबर तेरह वर्ष की उम्र में हो गद्दी पर बैठ गया था, लेकिन अठारह वर्ष की उम्र तक तो शासन बरामखां के ही हाथों में रहा इसके बाद इसने राज्य की बागडोर अपने हाथों में ले ली । जब अकबर बीस वर्ष का हुआ
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