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को नीचा दिखाने के लिए अपने मन्त्रबल द्वारा बादशाह की ऊंगली से अंगूठी निकालकर सूरिजी के ओघे (रजोहरण) में रख दी । सूरिजी ने अपने मन्त्रबल द्वारा उसे पंडित की पगड़ी में रख दी । जब बादशाह ने अपनी अंगूठी के बारे में पूछा तो पंडित ने कहा कि सूरिजी के ओधे (रजोहरण) में है । सूरिजी ने कहा कि अंगूठी ओधे में न होकर पंडित की पगड़ी में हैं बादशाह के कहने पर जब पंडित ने पगड़ी उतारी तो उसमें अंगूठी निकली। इस घटना का विवरण खरतरगच्छ बृहमी गुर्वावलि' और जिनप्रभसूरि अने सुल्तान मुहम्मद में भी मिलता है इस तरह से अपने व्यक्तित्व द्वारा बादशाह के दरबार में सूरिजी ने अपने चमत्कारों द्वारा बादशाह को प्रभावित किया। श्री जिमपाल उपाध्याय ने बादशाह व सूरिजी के बारे में कहा है कि
"विजयतां जिन सासनमज्जलं, विजयतां भवधिपल्लभा विययतां भुवि साहि महम्मदो, विजयंतां, गुरूसू रजिनप्रभ' जिनप्रभसूरिजी के अलावा जिनप्रभ. सूरि अने सुल्तान महम्मद नामक पुस्तक में कई अन्य जैनाचार्यों के नाम मिलते हैं-जिनमें गुणभद्रसूरि, मुनिभद्रसूरि, महेन्द्रसूरि, रत्नेश्वर आदि के नाम उल्लेखनीय हैं इन्होंने भी अपने-अपने व्यक्तित्व द्वारा तत्कालीन बादशाहों पर प्रभाव डाला।
इस तरह हम कह सकते हैं, कि जैनाचार्यों ने केवल मंगलकाल में ही नहीं अपितु प्राचीनकाल से ही तत्कालीन बादशाहों को प्रतिबोधित कर उस समय में समाज में व्याप्त बुराइयों को दूर कराने में सहयोग दिया।
1. वही पृष्ठ 95 2. जिनप्रभसूरि अने सुल्तान महम्मद पृष्ठ 141, 142 3. खरतरगच्छ बृहद गुर्वावलि पृष्ठं 96
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