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________________ ( 16 ) लगती है तब-तब उसकी परीक्षा करने के लिए अवश्य ही किसी महाज्योति युग प्रधान का अवतार होता है ।। सोलहवी शताब्दी में तत्कालीन सामाजिक स्थिति को सुधारने के लिए जैन सन्तों ने जो सहयोग दिया, इस विवेचन को आगे के लिए छोड़कर पहले हम यह देखेंगे कि प्राचीन जनाचार्यों का सामाजिक योगदान क्या रहा? (द) जैनाचार्यो का सामाजिक योगदान यदि इतिहास के पृष्ठ पलटकर देखें तो पता चलता है कि समय-समय पर विभिन्न जैनाचार्य राजाओं के पास आये और राजाओं ने भी गुरुओं के समान उन्हें सम्मान दिया । राजाओं को प्रतिबन्ध देकर तत्कालीन सामाजिक दोषों को दूर करवाने में जैनाचार्यों का विशेष योगदान रहा। देश में जीव-हिंसा, त्याग, दया, दान, सत्य और साधुता का प्रचार करने में जैन साधुओं का शलाघनीय योगदान रहा। राजपूत काल राजपूत काल का इतिहास देखने पर पता चलता है कि जैन धर्म कितना प्राचीन है । चावड वंश के संस्थापक वनराज का पालन-पोषण एक जैन सूरी ने किया था : इससे भी जैन धर्म के प्रचलन की प्राचीन स्थिति विदित होती है। गुजरात और भारत के इतिहास में सम्राट चौलुक्य कुमारपाल का चरित्र अद्वितीय है जिसे जैन हेमचन्द्राचार्य ने अपनी रचना "महावीर चरित्र" में "चालुक्य वंश" का चन्द्रमा कहा है । कुमारपाल के समय गुजरात का समाज पशु-वध, मासांहार, मद्यपान, वैश्यागमन तथा लूटपाट के बुरे परिणामों से अभिप्राप्त हो गया था। इस समय राज्य का एक अत्यन्त ही निन्दाजनक नियम था । कि राज्य के अधिकारी विना उत्तराधिकारी के मत व्यक्ति के घर की जब सभी सम्पत्ति और वस्तुओं पर अधिकार कर लेते थे तभी सब को अन्तिम संस्कार के लिए जाने देते थे। इस तरह की अनेक बुराइयों से उस समय गुजरात समाज अभिशप्त था। कुमारपाल प्रतिबोध से पता चलता है कि अपने मन्त्री के परामर्शानुसार कुमारपाल हेमचन्द्र से उपदेश ग्रहण करने लगे थे। - पहले हेमचन्द्र ने पशु वध, मांसाहार, मद्यपान, वैश्यागमन तथा लूटपाट की बुराइयों को दिखाने वाली कथाओं द्वारा कुमारपाल को उपदेश दिया उन्होंने 1. यदा यदा हि धर्मस्य ग्लाविर्भवति भारत । अभ्युत्थानमधमस्य तदात्मानं सूजाभ्यहम् । 2. "इय सम्यं धम्म-सरूप-साहगो साहियो अमच्चेणं । तो हेमचन्द्र सूरि कुमर नरिंदो न मई निचं।" कुमारपाल प्रतिबोध-सोमप्रभाचार्य-पृष्ठ ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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