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ग्रहण की। जिनहंसजी ने इनकी योग्यता और विद्वता को देखकर माघ शुक्ला पंचमी संवत 1582 (सन् 1525) को आचार्य पदवी देकर अपने पट्ट पर स्थापित किया । आचार्य पदवी पाकर गुर्जर, पूर्व देश, सिन्ध और मारवाड़ आदि देशों में पर्यटन किया। सिन्धु देश में शाह धनपति कृत महोत्सव से पन्च नदी के पांच पीर आदि को साधन किया। उस समय गच्छ के साधुनों में शिथिलाचार बढ़ा हुआ था । सूरिजी के मन में परिग्रह त्यागकर क्रियोद्वार करने की तीव्र इच्छा हुई । बीकानेर के मन्त्रि बच्छावत संग्राम सिंह को भी गच्छ की ऐसी स्थिति से असन्तोष था। इसलिए उसने गच्छ की रक्षा के लिए सूरिजी को बुलाया । सूरिजी ने भाव से क्रियोद्वार करके देराउर की यात्रार्थ बिहार किया। जैसलमेर की ओर जाते समय मार्ग में पानी की कमी के कारण पिपासा परीषह उत्पन्न हुआ। सूर्यास्त के बाद जल मिलने के कारण सूरिजी ने अपना व्रत भंग नहीं किया। और शुभ ध्यान में अनशन द्वारा अषाढ़ शुक्ला पंचमी संवत 1612 (सन् 1555) को स्वर्ग सिधार गये। 2. आचार्य श्रीजिनचन्द्रसूरि
जोधपुर राज्य के खेतासर ग्राम में ओसवाल जाति के रोहडगोत्रीय शाह श्रीवंत अपनी पत्नी श्रिया देवी के साथ निवास करते थे, एक पुन्यवान जीव उत्तम गति से श्रियादेवी के गर्भ में आया। समय पूर्ण होने पर श्रियादेवी ने चंत्र वदी बारस सवत 15951 (सन् 1538) को कामदेव के सदृश्य रूप लावण्य वाला, सूर्य के समान तेजस्वी, शुभलक्षण युक्त पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम "सुल्तान कुमार" रखा गया। ___ सम्बत् 1604 (सन् 1547) को जिनमाणिक्य सूरिजी खेतासार ग्राम में आये । उनके वचनों से सुल्तान कुमार के मन में वैराग्य भावना जागी तो उन्होंने जिनमाणिक्य सूरिजी से दीक्षा ग्रहण कर ली । गुरु ने दीक्षा नाम "सुमतिः धीर" रखा। विलक्षण बुद्धि होने से नौ वर्ष की अल्पायु में ही सकल शास्त्रों में पारंगत हो गये । शास्त्रों में निपुण होकर गुरु के साथ सारे देश में विचरण करने लगे।
1. पट्टावली संग्रह एवं युग प्रधान श्री जिनचन्द्रमूरि में सूरिजी का जन्म
सम्वत् 1595 बताया गया है तथा उम्र 9 वर्ष यानि दीक्षा सम्वत् 1604 जो उचित है लेकिन खरतरगच्छ इतिहास में इनका जन्म सम्वत् 1598 अंकित है जो उसमें दी गई दीक्षा की उम्र 1 वर्ष से मेल नहीं खाता । अत: इनका जन्म सम्वत् 1595 ही उचित प्रतीत होता है।
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