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________________ ( 10 ) / बादशाह के यहां से बिहार कर सूरिजी पाटण होते हुए ईंडर आये । ईंडर के पास साबली नामक ग्राम है, वहां के श्रावक रत्नसिंह पारख ने वहाँ Gita fear की अधिक प्रवृत्ति को देखकर सूरिजी से साबली आने की विनती की। सूरिजी साबली आये वहां के ठाकुर को प्रतिबोधितस्त कर जीव-हिंसा रुकवा दी ' । 1 यहां से ईडर, सिरोही होते हुए सूरिजी मारवाड़ पहुँचे । सूरिजी के प्रभाव से मारवाड़ का दुर्भिक्ष नष्ट हो गया, अच्छी वृष्टि हुई जिससे वह शुष्क प्रदेश भी नदी मातृक हो गया । मारवाड़ से मेवाड़ गुजरात, काठियावाड़, आदि होते हुए तैलंग देश में आये यहाँ के बादशाह ने सूरिजी के उपदेश से गोहत्या की निषेध कर दिया । इसी तरह बीजापुर के बादशाह ने सूरिजी के प्रभाव से बन्दियों को छोड़ दिया । इस भूतल पर जीव दया के अनेक कार्य करवाते हुए आषाढ़ सुदी ग्यारस संवत 1713 (सन् 1656 ) में इसका स्वर्गवास हो गया इसके बाद इनके पट्टधर आचार्य विजयप्रभसूरि हुए । (ब) खरतरगच्छ के प्रमुख आचार्य खरतरगच्छ की उत्पत्ति गुजरात की राजधानी पाटण में राजा दुर्लभसेन की राजसभा में श्री जिनेंदेवरसूरीजी पधारे। उनसे जैन साधुओं के आधार सम्बन्धि नियम जानकर राजा मैं उन्हें खरतर की पदवी दी । तभी ने खरतरगच्छ की उत्पत्ति मानी जाती है । मुगल काल में इस गच्छ के प्रमुख आचार्य श्रीजिनमाणिक्यसूरी, जिमचन्द्रसूरी, जिनसिंह सूरी एवं जिनराजसूरी हुए । 1. आचार्य श्रीजिन माणिक्यसूरिं सूरिजी का जन्म संवत 1349 (सन् 1492) को कूकड चोपड़ा गोत्रीय परिवार में हुआ । इनके माता-पिता क्रमशः रयणा देवी और राउल देव ने इनका नाम " सारंग" रखा । संवत 1560 ( सन् 1503 ) में जिनहंसजी के पास दीक्षा 1. विजयदेवसूरिन्द्रं वसन्तं तत्र साम्प्रतम् । प्रणस्य रत्नसिहो ये श्राद्धों विज्ञपयत्यथ श्री पूज्य राजसाधन्त श्रीसमाजविराजितः जीव-हिंसा प्रभूतान जायते पापभूपतः विजयदेव महात्म्यम् - श्री श्रीवल्लमपाठक - सर्ग 9 श्लोक 84,85,86 2. प्रखर बुद्धि वाला । Jain Education International सावलीग्राममागच्छ सर्वजीव हिताय हि वदागमनतस्तस्या निवृत्तिर्भविता चिरम For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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