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________________ ( 8 ) सराहना की। बादशाह ने नगरवासियों के साथ अपने मंत्रि वर्ग को भेजकर सरिजी का अतिशय सत्कार किया और ज्येष्ठ सुदी वारस के दिन बड़ी धूम-धाम से सुरिजी का नगर में प्रवेश कराया। हीरविजयसूरिजी की तरह विजयसेनसूरिजी ने भी बादशाह पर बहुत प्रभाव डाला । जैसे चन्द्र की विद्यमानता में आकाश सुशोभित होता है। वैसे ही विजयसेनसूरि को विद्यमानता में लाहौर शहर देदीप्यमान होता रहा। अकबर से जीवदया के कार्य करवाते हुए सूरिजी महिमनगर पधारे । संवत् 1652 (सन् 1595) में हीरविजयसूरिजी के स्वर्गवास के बाद श्री तपगच्छ का समस्त कार्य श्रीविजयसेनसूरि के सिर पर आ पड़ा । अब वे तपगच्छ रूपी आकाश में सूर्य के समान भव्य जीवों को उपदेश देते हुए विचरने लगे और दिन पर दिन श्री तपगच्छ की शोभा को बढ़ाने लगे। संवत 1659 (सन् 1602) का चातुर्मास अहमदाबाद में किया। अहमदाबाद में लोगों ने धर्मोपदेश का अपूर्व लाभ लिया • अहमदाबाद से राधनपुर होते हुए सूरिजी पाटन आये यहां लुकामत का स्वामी मुनि मेघगज सूरिजी के चरण कमल में आया सूरिजी की देशना से लुकामत का त्याग कर दिया और श्री तपगच्छ की शीतल छाया में विचरने लगे। सूरिजी के एक श्रेष्ठ शिष्य नन्दीविजयजी ने फिरगियों को जो कि दुरात्मा थे अपने कौशल से प्रसन्न कर लिया था जिससे फिरंगी लोग जिन धर्म में भक्ति रखने लगे थे इस समय पुनः फिरंगियों में जैन साधुओं से मिलने की तीव्र इच्छा हुई फिरंगियों के गुरु पादरी ने अपने हाथ से पत्र लिखकर सूरिजी को आमन्त्रित किया, मेघजी के कहने पर फिरंगियों के राजा ने भी एक पत्र लिखा जिससे सूरिजी दीव पधारे । सूरिजी व फिरंगियों के राजा के बीच में हुई धर्म वार्ता से राजा बहुत प्रसन्न हुआ। उसने आदर के साथ जैन मुनियों को दीव में रहने की सम्मति दी। जिस प्रकार कस्तूरी की सुगन्ध फैलाने की कोई आवश्यकता नहीं होती वह स्वतः ही फैल जाती है । उसी प्रकार सूरिजी के सद. कार्यों द्वारा उनकी कीति भी चारों ओर फैल गई, गांव-गांव में कई मंदिरों की प्रतिष्ठायें करवाते हुए और भव्य जीवों को उपदेश देते हुए ज्येष्ठ वदी ग्यारस संवत 1671 (सन् 1714) में खम्बात के पास अकबरपुर में सूरिजी का स्वर्गवास हो गया। 1. यह पहिले पहल लुकामत को त्याग करने वाले मेघ जी ऋषि का शिष्य था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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