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बादशाह अकबर के पास भी कुछ आम भेजे गये यद्यपि सूरिजी के स्वर्गवास समाचार से बादशाह को इतना दुख पहुंचा था कि उसकी आंखों से आंसू निकल पड़े, लेकिन आम्रफलों को देखकर बादशाह को सूरिजी के पुण्य प्रताप पर बहुत अभिमान हुआ ।
जहाँ सूरिजी का अग्नि संस्कार हुआ था वहां उनका स्तूप बनवाने के लिए जैन संघ ने अकबर बादशाह से भूमि मांगी, जिस बगीचे में सूरिजी का अग्नि संस्कार हुआ था बादशाह ने वह बगीचा और उसके आस-पास की 22 बीघा जमीन जैनों को दे दी । बगीचे में दीवकी लाडकीबाई ने एक स्तूप बनाकर उस पर सूरि जी की पादुकायें स्थापित कर दी ' 1
निःसन्देह सूरिजी असाधारण विद्वान थे । अबुलफजल बदायूनी तथा विन्सेंट स्मिथ जैसे पाश्चात्य विद्वानों ने मुक्त कंठ से उनका यशोगान किया है । यद्यपि उनके बनाये हुए "जम्बूद्वीपप्रज्ञप्तिटीका" और " अन्तरिक्षपार्श्वनाथ स्तव" आदि बहुत ही थोड़े ग्रन्थ उपलब्ध हैं लेकिन उन ग्रन्थों को देखने और उनके किये कार्यो पर दृष्टि डालने से उनकी असाधारण प्रतिभा में सन्देह का स्थान नहीं रह जाता । उस समय के बड़े-बड़े अजैन विद्वानों के साथ बाद-विवाद करने में, समस्त धर्मो का तत्व शोधने में, अकबर जैसे बादशाह पर प्रभाव डालकर सफलता प्राप्त करना असाधारण विद्वान का ही काम हो सकता है । अकबर ने अपनी धर्म सभा के पांच वर्गों में से पहले वर्ग में उन्हीं लोगों को रखा था जो असाधारण विद्वान थे, यही कारण हैं कि सूरिजी भी उसी प्रथम वर्ग के सभासदों में थे ।
3. आचार्य श्री विजयसेनसूरि
नालाई ( मारवाड़) में फागुन सुदी पूनम संवत 1604 ( सन् 1547) को कोडमदे और पिता कूरांशाह के घर उत्तम लक्षणों वाले पुत्र का जन्म हुआ जन्म से ही बालक के मुख पर सूर्य के समान तेज चमकता था। उत्तम लक्षण ओर चेष्टायें देखकर सामुद्रिक शास्त्री लोग कहने लगे कि "यह बालक इस भूमण्डल में जीवों को मोक्षमार्ग दिखाने वाला एक धर्म गुरु होगा ।" पुत्र को उत्तम लक्षणों से विभूषित देखकर माता-पिता ने उसका नाम "जयसिंह रखा । यही जयसिंह आगे चलकर आचार्य विजयसेनसूरि" के नाम से विख्यात हुए ।
1. हीरसौभाग्यकाव्य - देवविमलगणिविरचित सर्ग 17 श्लोक 192,95 1
2. आइने अकबरी - एच. ब्लॉच मैन द्वारा अनुदित पृ. 608, 1
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