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वे भूले न थे । समय-समय पर एकान्त में बैठकर घन्टों ध्यान किया करते थे। रात्रि के पिछले पहर में (यह समय योगियों के ध्यान के लिए अपूर्व गिना जाता है) उठकर ध्यान तो वे नियमित रूप से लगाया ही करते थे। इस तरह आध्यात्मिक प्रवृत्ति से और उपदेशादि बाह्य प्रवृत्ति दोनों की तरह से उनका जीवन जनता के लिए आशीर्वाद रूप था।
___ इस तरह दोनों प्रवृत्तियों से जीवन को सार्थक बनाते हुए सूरिजी गुजरात में बिहार कर रहे थे कि अचानक ऊना के सम्वत् 1651 (सन् 1594) के चातुमास में वे अस्वस्थ हो गये । इसलिए चातुर्मास के बाद श्रीसंघ ने उन्हें बिहार नहीं करने दिया। श्रीसंघ के आग्रह पर भी किसी तरह की औषधि का सेवन नहीं किया उनका विचार था कि बाह्य उपचार और औषधि की अपेक्षा धर्म रूपी
औषधि का ही सेवन करना चाहिये। दिन पर दिन सूरिजी की रुग्णता बढ़ती गई फिर भी सम्वत् 1652 (सन् 1595) में पyषणों में कल्पसूत्र (धार्मिक वांचन) उन्होंने ही वांचा । भादवा सुदी ग्यारस सम्वत् 1652 (सन् 1595) के दिन संध्या समय तक सूरिजी अपने ध्यान में बैठे रहे । अपना अन्त समय निकट जानकर अकस्मात आंखे खोलकर अन्तिम शब्दोच्चारण करते हुए सूरिजी ने कहा"भाईयों ! अब मैं अपने कार्य में लीन होता हूं। तुमने हिम्मत नहीं हारना । धर्म कार्य करने में वीरता दिखाना । मेरा कोई नहीं है, मैं किसी का नहीं हूँ। मेरी आत्मा, ज्ञान, दर्शन, चारित्रमय है सच्चिदानन्दमय है, शाश्वत है, मैं शाश्वत दुख का मालिक होऊ मैं आत्मा के सिवाय अन्य सब भावों का त्याग करता हूं। आहार, उपाधि और इस तुच्छ शरीर का भी त्याग करता हूं। इतना कहकर सूरिजी पदमासन में विराजमान होकर माला करने लगे। चार मालायें पूर्ण कर जैसे ही पांचवी माला फेरने को हुए कि माला उनके हाथ से गिर पड़ी, लोगों में शोक छा गया। उसी समय भारत को गुरू विरह रूपी बादलों ने आच्छादित कर लिया।
जिस स्थान पर सूरिजी का अग्नि संस्कार हुआ वहां एक आश्चर्यजनक घटना घटित हुई, कि अगले दिन वहां लोगों ने आम के पेड़ों पर फल देखे । किसी पर मोर के साथ छोटे-छोटे आम थे, किसी पर जाली पड़े हुए आम तो किसी पर पके हुए। कई ऐसे पेड़ भी फलों से भरे हुए थे जिन पर कभी फल आता ही
था। भादों के महीने में वृक्षों पर आम, आश्चर्य नहीं तो और क्या है ? निःसंदेह Bह्म सूरिजी के पुण्य प्रताप का फल ही कहेगें।
1. जैन श्वेताम्बर भादवा वदी बारस से भादवा सुदी चौथ तक आठ दिन
धार्मिक पर्व के रूप में मानते हैं, जिन्हें पयूषण कहा जाता है ।
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