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और पारसी आदि अन्य लोग सम्मिलित हुए:1
इस स्थान पर यति और सेवड़ा शब्द जैन साधओं के लिए आये हैं, न कि बौद्ध साधुओं के लिए । वास्तविकता तो यह है कि अकबर को कभी किसी बौद्ध विद्वान से समागम करने का अवसर मिल्म ही नहीं जैसा कि अबुलफजल ने भी लिखा हैं कि-"चिरकाल से बौद्ध साधुओं का कहीं पता नहीं है। बेशक पेगू, तनासिरम और तिब्बत में ये लोग कुछ हैं। बादशाह के साथ तीसरी बार र मणीय काश्मीर की मुसाफिरी में जाते वक्त इस मत के (बौद्ध मत के) दो चार वृद्ध मनुष्यों से मुलाकात हुई थी, मगर किसी विद्वान से भेंट नही हुई थी
इससे स्पष्ट होता है कि अकबर न कभी किसी बौद्ध विद्वान से मिला था और न कभी कोई बौद्ध विद्वान फतेहपुर सीकरी की धर्मशाला में सम्मिलित हुआ था।
इतना होने पर भी किसी ने. यह जानने का प्रयत्न ही नहीं किया वि अकबर के दरबार में कोई बौद्ध साधू था या नहीं ? अथवा अकबर ने कभी बोर साधुओं के उपदेश सुने या नहीं? स्मिथ का कहना है कि चलमर्स ने अकबर नामा के अंग्रेजी अनुवाद में भूल से जैन और बौद्ध शब्द का प्रयोग कर दिय बस एक लेखक की भूल के बाद सभी लेखक भूल करते गये जिसका परिणाम यह हुआ कि जैन शब्द की जगह बोद्ध शब्द ही रह गया । स्मिथ ने तो यहां तक लिखा हैं कि
"अकबर की बौद्धों के साथ न कभी भेंट हुई थी और न उस पर उनका प्रभाव ही पड़ा था, न बौद्धों ने कभी फतेहपुर सीकरी की धर्मसभा में भाग लिया थ
और न कभी अबुलफजल के साथ किसी बौद्ध विद्वान साधू की मुलाकार हुई थी। इससे बौद्ध धर्म के विषय में उसका (अकबर) ज्ञान बहुत ही कम था धार्मिक परामर्श सभा में भाग लेने वाले जिन दो · चार लोगों के लिए और होने का अनुमान किया जाता है, वह भ्रम हैं वास्तव में गुजरात से आये हु। जैन साधू थे।"
1. अकबरनामा हिन्दी अनुवाद-मथुरालाल शर्मा पृष्ठ 472 2. आइने अकबरी-एच. एस. जैरेट द्वारा अनुदित भाग 3, पृष्ठ 224
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