SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 188
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ परिशिष्ट 4 अलबदायूनी के अनुवादक डब्ल्यू. एच. लॉ ने "श्रमण" ' शब्द का प्रयोग किया है जबकि यहां सेवड़ा होना चाहिये क्योंकि उस समय जैन साधू सेवड़ा (श्वेताम्बर जैन) के नाम से जाने जाते थे । इसका प्रमाण है कि आज भी पंजाब में अजैन जैनों को भावड़ा कहते हैं जिन्हें मुगल काल में सेवड़ा कहा जाता था। अनुवादक ने अपने अनुवाद के फुटनोट में श्रमण का अर्थ बौद्ध श्रमण किया है । जो उचित नहीं है । क्योंकि बादशाह के दरबार में बौद्ध श्रवण तो कोई गया ही नहीं। यह बात तो निर्विवाद है कि अकबर के दरबार में रहने वाले शेख अबुलफजल और बदायूनी अकबर के समय का खास इतिहास लिखने वाले हैं। अकबर के विषय में आज तक जो लिखा गया है उन्हीं के ग्रन्थों के आधार से लिखा गया है उन्होंने अकबर के ऊपर प्रभाव डालने वालों में जैन साधुओं का नाम तो दिया है, हालांकि जैन साधू न लिखकर "श्रमण" "सेवडा" या यति शब्द का प्रयोग किया है उन्होंने यह भी लिखा हैं कि अकबर के दरबार में जैन “साधू गये और इन साधुओं का अकबर पर बहुत प्रभाव पड़ा । अबुलफजल ने तो अकबर की धर्म सभा के 140 सदस्यों में तीन जैन साधुओं हरिजी सूर (हीरविजयसूरि) बिजसेन और भानचन्द (विजसेन और भानुचन्द) के नाम भी दिये हैं। लेकिन बाद में जितने इतिहास लेखक और अनुवादक हुए उन्होंने यह जानने का प्रयत्न नहीं किया कि ये कौन हैं ? और किस धर्म के अनुयायी हैं । यदि वे जैन धर्म से परिचय करते तो उन्हें तत्काल ही पता चल जाता है कि वे बौद्ध श्रमण या अन्य धर्म वाले नहीं बल्कि जैन साधू ही हैं इस सत्य को खोजने का कार्य यदि किसी ने किया है तो वे हैं "अकबर व ग्रेट मुगल" के. लेखक डॉ. विन्सेन्ट ए स्मिथ, उसने अपनी खोजबीन के बाद यह निष्कर्ष निकाला है कि "अबुलफजल और बदायूनी" के ग्रन्थों के अनुवादकों ने अपनी अनभिज्ञता के कारण ही जैन शब्द की जगह "बौद्ध" शब्द का प्रयोग किया है । क्योंकि अबुलफजल ने तो अकबरनामा में लिखा है कि-"अकबर की धर्म सभा में सूफी, दार्शनिक, वक्ता, विधिज्ञाता, सुन्नी, शिया, ब्राह्मण, यति, सेवडा, चार्वाक, यहूदी, सानी, (ईसाइयों का एक सम्प्रदाय) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy