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________________ परिशिष्ट । महाराणा प्रताप का श्री हीरविजयसूरिजी को पत्र "स्वस्त श्री मगसुदाग्रह महासुभस्थान सरव औपमालाअंक भट्टारकजि महाराज श्री हीरवजेसूरजि चरणकमला अणे स्वस्तश्री वजेकटक चांवडरा डेरा सुथाने महाराजाधिराज श्रीराणा प्रतापसिंहजी ली, पगे लागणो बंचसी। अठारा समाचार भला है आपरा सदा भला छाईजे । आप बड़ा है, पूजनीक है, सदा करपा राखे जीसु ससह (श्रेष्ठ) रखावेगा अप्रं आपरो पत्र अणा दनाम्हे आया नहीं सो करपा कर लषावेगा । श्रीबड़ा हजुररी वमत पदारवो हुवो जीमें अठासु पाछा पदारता पातसा अकब्रजीने जेनाबादम्हे ग्रानरा प्रतिबोद दीदो जीरो चमत्कार मोटो बताया जीवहंसा (हिंसा) छरकली (चिड़िया) तथा नामपणेरू (पक्षी) वेती सो माफ कराई जीरो मोटो उपगार किदो, सो श्री जेनरा ध्रममें आप असाहीज अदोतकारी अबार कीसे (समय) देखता आपजु फेर वे न्हीं आवी पूरव हीदुसस्थान अत्रवेद गुजरात सुदा चारू हसा म्हे धरमरो बडो अदोतकार देखाणो, जठा पछे आपरो पदारणों हुवो नहीं सो कारण कहं वेगा पदारसी आगे सु पटाप्रवाना कारणरा दस्तुर माफक आप्रे हे जी माफक तोल मुरजाद सामो आवो सा बतरेगा श्री बडाहजुररी वषत आप्री मुरजाद सामो आवारी कसर पडी सुणी सो काम कारण लेखे भूल रही वेगा जीरो अदेसो नहीं जाणेगा । आगेसु श्रीहेमाआचरणजी ने श्री राजम्हे मान्या हे जीरो पटो करदेवाणो जिमाफक अरो पगरा भटारषगादीप्र आवेगा तो पटा माफक मान्या जावेगा। श्रीहेमाचारजी फेलां भी बडगच्छरा भटारषजी ने बडा कारणसुश्रीराजम्हे मान्य जि माफक आवेगा श्री हेमाचारजी पगरा गादी प्रपाटहवी तपगच्छराने मान्या जावेगारी सुवाये देसम्हे आप्रे गच्छरो देवरो तथा उपासरो वेगा जीरो मुरजाद श्रीराजस वा दुआ गच्छरा भटारष आवेगा सो राषेगा श्रीसमरणध्यान देव जात्रा जठे साद करावसी भूल सी नहीं ने बेगा पदारसी" | प्रबामगी पंचोली गोरो सम्बत् 1635 रा वर्ष आसोज सुद 5 गुरुवार Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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