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________________ ( 146) सुल्तान मुहम्मदशाह के दरबार में गौरव प्राप्त किया एवं सेवा कार्य के फलस्वरूप अनेक फरमान जारी किये । जैन साधुओं का प्रभाव मुगल सम्राटों पर भी हुआ यह सर्व विदित है लैकिन ऐसा नहीं कि उनका प्रभाव किसी एक ही पीढ़ी पर हुआ हो यह प्रभाव परम्परागत बना रहा क्योंकि अकबर ने अपने पुत्रों को शिक्षा दिलाने के लिए जैन साधुओं को रखा एवं जहांगीर ने भी अपने पुत्रों को शिक्षा दिलाने के लिए भानुचन्द्रजी को गुजरात से मोडू बुलाया, क्योकि जहांगीर मे स्वयं जैन साधुओं से शिक्षा ग्रहण की थी इसी शिक्षा एवं पारिवारिक परम्परा का प्रभाष है, कि मुगल सम्राटों ने अपने शासनकाल में जैन साधुओं को सम्मानित कर अपने दरबार में बुलवाया तथा उनसे धर्मोपदेश ग्रहण कर लोक कल्याण कारी कार्य किये । इन धर्मप्रदेशों का प्रभाव क्रमशः इतना प्रगाढ़ होता गया कि सम्राटों की अभिरूचि जैन उपदेशों के श्रवण, मनन एवं चिन्तन में अधिक हो गई। ऐसा पता उस समय के विदेशी पर्यटकों के विवरण से भी मिलता है। पिनहरों नाम के पुतंगीज पादरी ने लाहौर से 3 सितम्बर 1595 के दिन एक पत्र लैटिन भाषा में अपने देश में लिखा जो अकबर के जन सम्प्रदाय के अनुसार आचरण करने की पुष्टि करता है । जिसका अंग्रेजी अनुवाद करके डॉ स्मिथ ने अपने 2-11-1918 के पत्र के साथ शास्त्रविशारद जैनाचार्य श्री विजयधर्म सूरिजी को भेजा सम्पूर्ण पत्र के लिए देखिये परिशिष्ट न. 8. जैनाचार्यों का समन्वयवादी दृष्टिकोण राष्ट्र निर्माण एवं सामाजिक उत्थान की भावना से प्रेरित था क्योंकि हम देखते हैं कि उन्होंने मुगल शासकों से मिल. कर उन्हें प्रतिबोध दिया। समाज कल्याण के कार्य करवाये, मगर ऐसा कोई काय नहीं करवाया जिसका विरोध समाज के किसी भी वर्ग ने किया हो यानि उनके कार्य जैन, अजैन, हिन्दू, मुस्लिम सबके हित की दृष्टि से किये गये । राजनीति में पारंगत शासक की बुद्धि का क्षेत्र व्यापक होता है तथा वै.जो भी कार्य करते हैं उसे राष्ट्र के परिपेक्ष्य में देखकर ही करते हैं, इसी कारण जैन साधुओं ने जो काय मुगल बादशाहों से करवाये उनका किसी ने विरोध नहीं किया। निष्कर्षतः हम देखते हैं कि जैन आचार्यों एवं मुनियों को मुगल बादशाहों को प्रभावित करने का मुख्य लक्ष्य समाज एवं राष्ट्र को एकता के सूत्र में बांधना एक शान्ति स्थापित करना था । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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