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________________ ( 145 ) बासन व्यवस्था को बादर्श स्थापित करना सामान्य शासक का कार्य नहीं अपितु असामान्य गुणों का द्योतक होता है । शासन सत्ता को अधिग्रहण कर शासक ध्यष्टि से समष्टि की ओर अग्रसर होता है । उसका अपना व्यक्तित्व जीवन महीं बल्कि प्रजा रंजना ही उसका मुख्य लक्ष्य माना जाता हैं। प्रारम्भ से हम खति है कि तपागच्छा औरखरतरगच्छ दोनों सम्प्रदायों के जैन साधुओं ने जिमीति में प्रवेश नहीं किया, अपितु राजनीति के धारक सम्राट स्वयं उनके आर्चरणासि उनकी ओर आकर्षित हुए । उनके आशीर्वाद प्राप्त करने, उन्हें प्रसन्न करने तथा आध्यात्मिक तुष्टि के लिए बादशाहों ने वे कार्य किये जिन्हें लोक कल्याणार्थ जैन सधि चाहते थे। साधू के पास कोई भौतिक बल नहीं होता, उसे केवल तपबल का आधार होता है और उसी से वह अपने सभी कार्य जिन कार्यों से लोकोपकार्य होता है, की पूर्ति करता है। जैन साध अपने धर्म के प्रचार प्रसार के लिए ही पद यात्रा करते हैं। व्रतों का पालन करते हैं। उन्होंने अपने प्रज्ञाबल से ऐसे मुगल बादशाहों को आकृष्ट किया जिनका एक छत्र राज्य भारत पर था। तथा उन्होंने राजनीति में धर्म की समावेश कराकर अपने आदशी की स्थापना की आचार्य हीरविजयसूरिजी एवं अन्य जैनाचार्यों जो मुगल दरबारों में पहुंचे उनका लक्ष्य था कि अगर शासन को अपने ज्ञान के प्रतिबोध से आकृष्ट कर लिया तो वह अपनी राजनीति में उस प्रतिबोध के प्रभाव से अवश्य ही धर्म का समावेश करेगा, जिससे एक व्यक्ति का नहीं, अपितु, समूचे.. राष्ट्र का हित होगा। इसी भाव से उन्होंने मुगल बादशाहों को प्रतिबोध दिया क्योंकि उस समय भारत पर मगल सम्राटों का ही आधिपत्य था। राजपूत काल में हम देखें तो इससे भी यह स्पष्ट होता है कि जैन साधुओं ने केवल मुगल बादशाहों को ही नहीं, अपितु अन्य सम्राटों को भी अपने सद्उपदेशों से प्रभावित किया । हेमचन्द्राचार्य ने चौलुक्य वंश के चन्द्रमा कुमार. पाल को सत्य अहिंसा आदि गुणों को ग्रहण कर दुर्गगों के त्याग का उपदेश दिया तथा उसते,व्रत पालन की प्रतिज्ञा की। विशेष तिथियों पर पशु-वध निषेध कर दिया इस प्रकार जैन धर्म की शिक्षा का सबसे अधिक प्रभाव राजाओं पर ही हुआ। जिनप्रभसूरि, जिनदेवसूरि, रत्नशेखर, जैनाचार्यों ने सल्तनत युग में तत्कालीन सुल्तानों पर अपना प्रभाव डाला इनमें मुहम्मद तुगलक, फिरोज तुगलक; अलाउद्दीन खिलजी के नाम आते हैं जिनप्रभुसूरि ने 14 वीं शताब्दी में तुगलक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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