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________________ परिशिष्ट 2 खम्भात में विजयसेनसूरिजी की पादुकाएं वाले पत्थर का लेख 1160 सम्वत् 1672 वर्षे माघसितंत्रयोगश्यों रवी "वृद्ध शाखीय । स्तम्भतीर्थनगरवास्तव्य उसवाल ज्ञातीय सा० श्री महल भीयाँ मौहणदे लघुभूत सा0 जगसी भर्या तेजलदे सुत सा० सोमा नाम्ना भगिनी धमई भार्या सहजलदेवं वयजलदे सुतः सा० सूरिजी स (रा) मजी प्रमुख कुटुं बयुतेन स्वश्रेयसे श्री अकबर सुरत्राणदत्त बहुमाम भट्टारक, श्रीहीरविजय सूरिपट्टपूर्वाचल तटीसहस्त्रकिरणानु कारकांणां । ऐदयूगीनराधिपति चक्रवतिसमान श्री अकबरें छत्रपति प्रधान पैदि प्राप्त प्रभूतभट्टाचार्या दिवादिवृदंज यवादलक्ष्मीधारणकोणा। सकलेलुविहितभट्टार. कपरंपरापुरं दराणां । भट्टारक श्रीविजयसेनसूरीश्वरोणी पादुकोः प्रात्तुर्गस्तूपसहिताः कारिताः प्रतिष्ठापिताश्च महामहः पुरः सरं प्रतिष्ठिताश्च श्रीतपागच्छे । भी श्रीविजयसेनसूरिपट्टालंकार हार सौभाग्यादिगुणांधीरसुविहित सूरिशंगार भट्टारक श्रीविजयदेवसूरिभिः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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