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सत्संग और समागम से प्राप्त हुआ। जब ऐसा प्रभाव शासक वर्ग पर पड़ा क्यों न जनता पर पड़े अर्थात् जैन साधुओं ने अपने कार्य एवं संस्कारों से प्रजा को तो प्रभावित किया ही शासक वर्ग को विशेष और शासक वर्ग का प्रभाव र जनता पर पड़ा । इस प्रकार जैन साधु भारतीय संस्कारों की पूर्ण रूप से स्था करने का अनवरत प्रयास करते रहे जिसका प्रमाण है कि जहांगीर स्वयं. प्रतीकों को धारण किये रहता था। 2. राजकीय संरक्षण
मुस्लिम शासकों ने जितना राजकीय संरक्षण जैन साधुओं को दिया उत अन्य किसी सम्प्रदाय के साधुओं को नहीं । हम प्रारम्भ से देखते हैं कि आच हीरविजयसूरिजी को अकबर ने आमन्त्रित किया और उनके उपदेशों से जीव-हिं को बन्द किया।
हीरविजयसूरिजी के स्वर्गवास के पश्चात् उनके स्तूप के लिए 22 बी जमीन और विजयसेनसूरि के स्वर्गवास के पश्चात् 10 बीघा जमीन उनके स्तूप लिए जैन श्रीसंघ को दी।
हीरविजयसुरिजी को अकबर ने पत्र भेजा जिसमें विजयसेनसूरि को लाह भेजने का निवेदन था उनके कार्य कर जाने के बाद अकबर (खम्भात के पा सूरिजी के नाम 10 बीघा जमीन भी दानस्वरूप दी।
विजयदेवसूरिजी को जहांगीर ने अपने दरबार में आमन्त्रित किया' उस उपदेशों से अनेक दया के कार्य किये । तीर्थ रक्षा के फरमान जारी किये । बन्दियों को मुक्त किया।
अकबर जब 1556 में सिंहासनारूढ़ हुआ तब उसकी राज्य सीमा विह नहीं थी लेकिन उसकी धार्मिक नीति के कारण अपनी मृत्यु तक अपने राज्य । पूर्ण विस्तार प्रदान किया।
अकबर धर्म तत्व जिज्ञासु था इसी कारण उसने इबादतखाने जैसे स्थान का निर्माण कराया। जहां बैठकर वह सभी धर्म के आचार्यों से धर्म करता था इस धर्म सभा के सदस्यों का पांच श्रेणी में विभाजन किया इनमें प्रमुख जैन साधुओं के नाम आते हैं--हीरविजयसूरिजी, विजयसेनसूरि एवं चन्द्र उपाध्याय ।
पिता की धार्मिक नीति एवं व्यवहार का अनुसरण जहांगीर ने कि क्योंकि उसकी धमनियों में हिन्दू रक्त प्रवाहित था। उसने अपने दरबा सभी धर्मों से सहानुभूति रखी। पिता के ' फरमानों को यथावत जारी रख
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