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जनकल्याण की भावना---
राजनीति का मुख्य आधार जनकल्याण होता है, शासन सत्तासीन होते ही जा को अपना कुछ नहीं रहता। वह अपना जीवन जन कल्याण के लिए सम. त कर देता है। ऐसी भावना ही राजनीति को धर्म से जोड़ती है और ऐसा धर्म जनीति को मूल आधार है जिसे राजनीति से अलग नहीं किया जा सकता। न साधू अपने पद यात्रा के दौरान जन सामान्य से मिलते थे उन्हें उपदेश देते र आगे बढ़ते थे।
जब साधुओं को सम्राट ने अपने दरबार में आमन्त्रित किया तब उन्होंने (समय इसी जनकल्याण की भावना को अपने धर्मोपदेश का मुख्य आधार 'नकर बादशाह को जन-कल्याणकारी कार्य करने के लिए प्रेरित किया । ___ जैन साधु पूर्ण विरक्त एवं अपरिग्रह होते हैं, परिग्रह उन्हें जन कल्याण के र्ग में बाधा है और इपी अपरिग्रह प्रवृत्ति, त्याग, संयम और नियम | कठोर साधना से ही शासक वर्ग इनसे प्रभावित होकर इनके उपदेशों को इण करता था तथा वह कार्य करता था जो आशीर्वाद के रूप में इससे प्राप्त रते थे।
अकबर ही नहीं जहांगीर भी अपने पिता की धार्मिक नीति का अनुसरण रता रहा, अन्तर केवल इतना था कि अकबर स्वयं धर्माचार्यों को आमन्त्रित रता था लेकिन जहाँगीर के दरबार मैं धर्माचार्य स्वयं जाने को उत्सुक रहा रते थे, उसने हिन्दू धर्म ग्रन्थों बाल्मिीकी रामायण सिक्ख गुरू ग्रन्थ साहब । कई भाषाओं में अनुवाद करवाया। ईसाइयों से प्रगाढ़ मंत्री की तथा बाइबिल
अनुवाद के लिए प्रेरणा दी । इससे लगता है कि यह उसकी धमनियों में दौड़ते र हिन्दू रक्त का प्रभाव था, क्योंकि उसकी माता भी हिन्दू थी, और पत्नी भी न्दू । और इन सब जनकल्याणकारी कार्यों के प्रति प्रमुख शक्ति कार्य कर रही । जैन साधुओं की उपदेशमयी वाणी।
ब) भारतीय संस्कारों की स्थापना
धर्म के मूल में पार्थक्य की भावना नहीं हुआ करती क्योंकि धर्म को दृष्टि कोई भेद नहीं होता इसी भाव से प्रेरणा पाकर धर्मपालक सम्राटों मे धर्मध्वजा रिक धर्मगुरूओं से प्रतिबोध प्राप्त कर अपने शासनकाल में समाज को श्रेष्ठ स्कारों से संस्कारित किया और यह सिद्ध कर दिया कि धार्मिक संकीर्णता मानव कुत्सित संस्कारों का परिणाम है । जजियोकर की समाप्ति, तीर्थयात्रा कर का षेध यह भी सम्राट की त्यागी वृत्ति का प्रतीक है जो उन्हें जैन साधुओं के
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