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________________ ( 140 ) मुनियों ने मुगल बादशाहों को प्रभावित किया अपने तपबल से आचार्य हीरविजयजी ने तो अपने मानवरूप में अलौकिक तत्वयुक्त व्यक्तित्व का पूर्ण परिचय देकर अकबर को अपने तप साधना से प्रभावित किया एवं ऐसे असम्भाव्य कार्यं करवाये जो कार्य आज भी शासन से आये दिन आन्दोलन करने पर भी बन्द नहीं करवाये जा रहे हैं उनमें प्रमुख हैं - गौ वध पर पाबन्दी । अकबर ने अपनी धार्मिक मीति से मात्र इस्लाम को ही नहीं बढ़ाया बल्कि उसने सर्व धर्म समन्वय की भावना से इबादतखाने का निर्माण कराया दीन इलाही धर्म का प्रचार किया जिसमें सभी धर्माचार्यो को बुलाकर वह धर्म चर्चा करता था और सभी धर्मों के रहस्यों को जानना चाहता था इतना ही नहीं उसने हिन्दू समाज में फैली दास प्रथा, बालविवाह आदि कुरीतियों को समाप्त किया उनकी दशा में सुधार किया करों की समाप्ति की घोषणा की और समय-समय पर होने वाले हिन्दुओं के सभी धार्मिक उत्सवों में वह स्वयं सम्मिलित होता था । इससे उसमे हिन्दुओं के मनोबल को बढ़ाया । हम देखते है कि ये सब जैन साधु समाज के उपदेशों का परिणाम रहा हैं, जिससे प्रेरित होकर अकबर जहांगीर जैसे बादशाह हिन्दू धर्म की ओर आकर्षित हुए और हिन्दुओं से सामाजिक सम्बन्ध बढ़ाये जर्जियाकर जिसे मृत्यु दण्ड की संज्ञा दी गई थीं अकबर ने समाप्त कर दिया । राजपूत काल में हैमचन्द्राचार्य ने कुमारपाल को प्रबोध दिया। जिस प्रबोध से उसने गौ वध, मांसभक्षण का निषेध कर दिया। इन सब बातों का प्रभाव सामान्य जन समाज पर पड़ता गया और अपने शासक वर्ग को धर्म की ओर झुकता हुआ देखकर जनता के मन में भी इसी प्रकार की भावनायें आती गई, क्योंकि यथा राजा तथा प्रजा का सिद्धान्त मानकर ही जैन साधुओं मे राजाओं और बादशाहों को अपने उपदेशों से प्रबोध दिया इस विषय में आचार्य श्रीहीर विजयसूरिजी का स्पष्ट मत था कि * हजारों बल्कि लाखों मनुष्यों को उपदेश देने में जो लाभ होता है । उसकी अपेक्षा कई गुना ज्यादा एक राजा या सम्राट को प्रतिबोध देने में मिलता है। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए हो अपना शिष्यत्व प्रदान किया। क्योंकि उनके थीं। इसके लिए उन्होंने अपने पूर्वाचार्यों की वाले संघर्षो को सहन करने की प्रवृत्ति का ही अनुसरण कोटि कलेशू । Jain Education International सम्राटों को जैनाचार्यों ने राजा एवं सम्मुख शासन सेवा ही सच्ची सेवा उपासना पद्धति और उसमें आने किया - सहे धर्म हेतु For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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