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गुजरात में तीन मन्दिर, बनारस और उसके आस-पास के 72 मन्दिर और चार मन्दिर अहमदाबाद में तोड़े गये काश्मीर के कुछ मन्दिर भी उसकी धामिक कट्टरता का शिकार हुए। इन मन्दिरों की सामग्री मस्जिदें बनाने के. काम में ली गई । इच्छाबल के हिन्दू मन्दिर को मस्जिद में बदल दिया गया।
__इस तरह शाहजहां ने हिन्दू-मुस्लिम एकता पर ऐसा कुठाराघात किया जिसकी आज के आशावादी, देशभक्त, कल्पना भी नहीं कर सकते ।। ___इतना होने पर भी शाहजहां में कहीं कहीं सहिष्णुता का पुट भी पाया जाता है जैसा कि उसने पूर्वजों से चली आ रही झरोखा दर्शन तुलादान व हिन्दुओं को उच्च पदों पर नियुक्त करने की प्रथा को जारी रखा। राजा जसवन्तसिंह, जगतसिंह, जयसिंह, बिट्ठलदास पांच हजारी मनसब पर थे।
यद्यपि उसने मसलमानी त्योहारों को राजकीय सज्ञा देकर अधिक रूचि के साथ मनाया । और इस अवसर पर मुसलमानों को एक बड़ी राशि दान में दी जाती थी। हिन्दू त्योहारों को मनाने में व्यक्तिगत रूचि नहीं ली । लेकिन बसन्त, दशहरा, रक्षा बन्धन आदि त्यौहार भी खुले आम मनाये जाते थे।
शाहजहां ने अपने पिता व पितामह की तरह धार्मिक वाद-विवाद में रूचि नहीं ली फिर भी जैसा कि कानूनगो लिखते हैं कि 18 दिसम्बर-1634 को राजा लाहौर के पास प्रसिद्ध सन्त मेन मीर के घर उससे मिलने गया और सत्य व ईश्वर विषय पर चर्चा की:
शाहजहां के समय में फारसी तथा हिन्दी साहित्य में विशेष उन्नति हुई । सुन्दरदास और चिन्तागणि हिन्दी के दो प्रसिद्ध कवि इसी काल में हुए जिन्होंने कई विषय लिखे जिनमें धार्मिक विषय भी शामिल थे संस्कृत साहित्य भी उन्नति की ओर अग्रसर हुआ। बादशाह ने स्वयं उपनिषद का अनुवाद किया और उसे कुरान के समान ही बतायाः
जहां तक पशु-वध निषेध का प्रश्न है, कट्टर मुसलमान होते हुए भी उसने पशु-वध निषेध को जारी रखा हां अपने पूर्वजों द्वारा घोषित किये गये दिनों में कुछ कटौती जरूर कर दी गई। अकबर और जहांगीर की हिन्दुओं के प्रति सम्मान की भावना के कारण निश्चित क्षेत्रों में पशु-वध निषेध जारी रखा ।
1. रिलिजियस पॉलिसी ऑफ द मुगल एम्परस-श्रीराम शर्मा पृष्ठ 103 2. जनरल ऑफ इण्डियन हिस्ट्री पृष्ठ 49 3. रिलिजियस पॉलिसी ऑफ द मुगल एम्पररस-श्रीराम शर्मा पृष्ठ 112
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