SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 171
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ षष्टम अध्याय शाहजहां की धार्मिक नीति एवं जैन धर्म मदि अकबर धामिक मामलों में उदार था, जहांगीर उससे अभिन्न था। तो शाहजहां में इस मामले में अपने पूर्वजों से विपरीत भाव पाया जाता हैं। यद्यपि शाहजहां की मां और दादी मां राजपूत घराने से सम्बन्धित थी लेकिन वह अपने पूर्वजों के लक्षणों से प्रभावित नहीं हुआ। उसने अपने पिता व पितामह की तरह हिन्दू राजकुमारियों से विवाह नहीं किया, अत हरम में हिन्दू प्रभाव कम होना स्वाभाविक था । अकबर व शाहजहां दोनों में वितरीत भाव होने के कारण जहां अकबर ने सब धर्मों की उन्नति में सहयोग दिया वहां शाहजहां ने अन्य धर्मो को दबाकर इस्लाम धर्म की उन्नति में विशेष रूचि ली। इसलिए हिंजरी सन राजकीय कैलेन्डर घोषित किया, सिजदा अथवा जमीबोस जो अकबर, जहांगीर के समय अनिवार्य नहीं था, अनिवार्य कर दिया गया, दरबार में सारे मुस्लिम त्योहार नियमित रूप से मनाये जाने लगे जिसमें हिन्दू मुसलमान समान रूप से बादशाह को उपहार देते थे, श्रीराम शर्मा लिखते हैं कि 12 वें वर्ष में ईद के अवसर पर राजा जसवन्तसिंह और राजा जयसिंह ने बादशाह को हाथ भेंट किया। शाहजहां की धन लोलुप प्रवृत्ति ने उसे हिन्दुओं पर अनुचित कर लगाने को बाध्य किया जिनमें तीर्थ यात्री कर प्रमुख है जो कि हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर एक गहरी चोट थी यद्यपि बनारस के कविन्द्राचार्य के कहने पर बाद में बादशाह ने इस कर को हटा दिया। हिन्दुओं की धार्मिक भावनाओं पर कुठाराघात करते हुए पुराने मन्दिरों के जीर्णोद्धार की मनाही कर दी गई । नये मन्दिर बनाने की इजाजत न दी गई यहां तक कि उसके पूर्वजों के समय से जो मन्दिर बन रहे थे, उनका निर्माण कार्य भी रुकवा दिया। 1. रिलीजियस पोलिसी ऑफ द मुगल एम्पररस-श्रीराम शर्मा पृष्ठ 96 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy