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________________ ( 135 ) विजयसेनसूरि के शिष्य देवचन्द्र एवं विवेकचन्द्र, इसी परम्परा के मुनि गुणचन्द्र, सेजचन्द्र, जिनचन्द्र, जीवनचन्द्र, ज्ञानचन्द्र, दीपचन्द्र, दौलतचन्द्र तथा प्रतापचन्द्र सभी सम्राट जहांगीर के समकालीन थे । खरतरगच्छ सम्प्रदाय के मुनि श्री जिनराजसूरि, श्रीजिनसागरसूरि, श्री जयसोम, महोपाध्याय, श्रीगुणविनयोपाध्याय, श्रीध मंविधानोपाध्याय, श्रीआनन्दकीर्ति, श्रीभद्रसैन, श्रीकल्याण समुद्रसूरि, श्रीभावसागरसूरि, श्रीदेवसागरगणि श्री विजयमूर्ति गणि, श्रीविजयसिंहसूरिजी आदि आदि । उक्त सभी आचार्यो एवं मुनियों के नामों का उल्लेख तत्कालीन मन्दिरों के शिलालेखों में मिलता हैं जो एपिप्राफिया इण्डिका तथा प्राचीन जैन संग्रह में प्रका शित है. 1 शिष्य परम्परा के विद्वान कषि मेघविजयगणि ने श्रीविजय देवसूरि की प्रशस्ति में देवानन्द महाकाव्य की रचना की तथा इनके शिष्य श्रीविजयदेवसूरि की प्रशस्ति में दिग्विजय महाकाव्य की रचना की। इन दोनों महाकाव्यों के प्रारम्भिक पद्यों में भी ऊपर वर्णित प्रत्येक जैनाचार्यों का उल्लेख आया है । 1. प्राचीन जैन संग्रह लेख पृष्ठ 25-40 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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