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________________ ती है।। जैन शासन की प्रभावना के कारण सूरिजी की प्रसिद्धि सवाई यग प्रधान नाम से हुई । खरतरगच्छ पट्टावली में भी इसका विवरण मिलता है। इसी मय एक विद्वान ने बादशाह के दरबार में आकर गर्वपूर्वक शास्त्रार्थ करने की उद्घोषणा की। बादशाह ने सूरिजी को समर्थ समझकर शास्त्रार्थ करने के लिए कहा । सूरिजी ने असाधारण प्रतिभा द्वारा शास्त्रार्थ में भट्ट को पराजित कर युग प्रधान भट्टारक पद की ख्याति प्राप्त की। इस तरह हम कह सकते हैं कि नहांगीर ने भी अपने पिता की तरह ही आचार्य श्री जिनचन्द्रसूरिजी को सम्मानित किया और सूरिजी ने भी अकबर की तरह ही जहांगीर पर भी अलौकिक प्रभाव डाला। 4. आचार्य श्री जिनसिंह सूरिजी अकबर अपने काश्मीर प्रवास के समय मानसिंह (आचार्य जिनसिंह सूरि) को धर्मोपदेश के लिए साथ ले गया था। शाहजादा सलीम भी साथ ही था इसलिए वह जिनसिंहसूरि से अच्छी तरह से परिचित था। सूरिजी ने भी जिस तरह अकबर को प्रतिबोधित कर जीव दया के कार्य करवाये थे उसी तरह जहांगीर को भी अपनी अलौकिक प्रतिभा से प्रतिबोधित किया था। बादशाह को धर्मोपदेश देकर अभयदान का पटह बजवाया था । एतिहासिक जैन काध्य संग्रह में विवरण मिलता है : बादशाह सूरिजी के गुणों से इतना प्रभावित हुआ कि मुकरबखान को भेजकर श्रीसंघ द्वारा उन्हें "युग प्रधान" की पदवी प्रदान कराई: 1. श्री साहि सलेम राज्ये ताद्यकृत श्री जिनशासन मालियन्तः श्रीसाधू विहारो निषिद्धः साहितना : तश्रावसरे श्री उग्रसेनपुरे गत्वा साहि प्रतिबोध्य च साधूनां बिहारः स्थिरीकृतः । तदा लब्धः सवाई युग प्रधान बड़ागुरू रितिबिरूदो येन गुरुणा। प्राचीन जैन लेख संग्रह-सम्पादक जिनविजयजी, भाग 2, लेखांक 17 पृष्ठ 20 2. खरतरगच्छ पट्टावली-सम्पादक जिनविजयजी पृष्ठ 56 3. "वचन चातुरी गुरू प्रतिबूझवि साहि "सलेम" नरिंदो जी अभयदान नउ पडहो वजाघिउ, श्री जिनसिंह सूरिंदो जी ॥ एतिहासिक जैन काध्य सह-सम्पादक जिनविजयजी पृष्ठ 132 श्रीसंघ रे युग प्रधान पदवी लही, आया मुकरबखान रे । साजन मन चित्या हुआ, मल्या दुरजन माण रे ।। एतिहासिक जैन काव्य संग्रह-सम्पादक जिनविजयजी पृष्ठ 132 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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