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________________ ( 126 ) ( 6 ) सरस स्निग्ध भोजन और कामोद्दीपक पदार्थों का उपभोग नही करना । (7) ( 8 ) स्त्री-पुरुष किसी को भी सराग दृष्टि से न देखना । सर्वदा आवश्यकता से भी कम भोजन करना जिससे आलस्य ओ विकार उत्पन्न न हों । ( 9 ) शरीर पर किसी भी प्रकार से श्रंगार या शोभा न करना ताकि सराम दशा जाग्रत न हो । सब तुम स्वयं विचार कर देखो कि इन प्रतिज्ञाओं को निभाने वाला किस प्रकार आचारच्युत हो सकता हैं हां जो भृष्ट हुए हैं वे इन नियमों को यथावत पालन न करने के कारण ही जैन शासन उन्हें किसी भी हालत में उपादेय नहीं समझता और न सहानुभूति ही रखता है । अतः समस्त साधुओं पर अश्रद्धा लाकर उन्हें कष्ट पहुंचाना तुम्हारे जैसे विचारशील, न्यायवान, और प्रजा हितेच्छु सम्राट के लिए उचित नहीं कहां जा सकता: " सूरिजी के मुखारविन्द से इस प्रकार धर्मोपदेश सुनकर बादशाह ने बेरोकटोक साधू बिहार करने का फरमान जारी कर दिया। इससे श्रीसंघ को अपार खुशी हुई । श्रीसंघ के कहने से सूरिजी ने सम्वत् 1669 ( सन् 1612 ) का चातुर्मास आगरा में ही किया । इस प्रकार सूरिजी ने सम्राट को प्रतिबोधित कर साधू बिहार प्रतिबन्धक हुक्म का उन्मूलन करवाके साधू संघ की महान रक्षा के साथ जैन शासन की अपूर्व सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त किया । वास्तव में सम्राट का एक व्यक्ति के अनाचार से सारे साधू संघ को अनाचारी मान सबको देश निर्वासन का हुक्म देना सूरिजी ने सम्राट को उसकी इस गहरी भूल का एहसास का जो गौरव प्राप्त किया और भानुचन्द्रगणिचरित में भी मिलता है शिलालेखों में भी इसकी पुष्टि अन्यायपूर्ण था । करवाकर उस उसका विवरण रद्द करवाने अन्यायपूर्ण हुक्म को एतिहासिक जैन काव्य संग्रह * 1. युग प्रधान श्री जिनवन्द्र सूरि- अगरचन्द भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 148 149 2. एतिहासिक जैन काव्य संग्रह - अगरचन्द भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 179 3. भानुचन्द्रगणिचरित-भूमिका लेखक अगरचन्द भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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