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सूरिजी को युग प्रधान पद दिये जानने का विवरण शिलालेखों में भी मिलता है।
सूरिजी को युग प्रधान पद दिये जाने का वर्णन तो भानुचन्द्रगणिचरित में भी मिलता है । लेकिन इस पुस्तक के भूमिका लेखक नाहटा आगे लिखते हैं कि जब से सं 1674 (सन् 1617) में सूरिजी बादशाह के दरबार में आ रहे थे तो मेडता में उनका स्वर्गवास हो गया जब बादशाह को पता चला तो उसने सूरिजी की मृत्यु का स्वागत किया. इसका कारण नाहटा की समझ में नहीं आया वास्तव में इसका कारण मानसिंह द्वारा जहांगीर के विषय में की गई भविष्यवाणी थी। बीकानेर के राजा रायसिंह भरटिया ने मानसिंह से जहांगीर के राज्य के बारे में पूछा, मानसिंह ने बताया कि बादशाह का राज्यकाल अधिक से अधिक दो वर्ष रहेगा । बादशाह ने क्रोधित होकर मानसिंह को बुलवाया। मानसिंह बीकानेर से बिहार कर मेड़ता आये वहां शायद मानसिंह को पता चल गया कि बादशाह ने किस कारण से बुलाया है इसलिए विष खा लेने पर अस्वस्थ हो जाने के कारण काल कर गये यही कारण था कि जब बादशाह को इस घटना का पता चला तो उसने मानसिंह की मृत्यु का स्वागत किया। जहांगीर ने अपनी आत्मकथा में इस घटना का जिक्र किया है.' 5. आवार्य श्री विजयदेव सूरि
जिस प्रकार मुगल सम्राटों में अकबर, जहांगीर और शाहजहां तीनों सम्राट भारत के गौरव के उत्कर्ष हुए उसी प्रकार जैनाचार्यों में भी हीरविजयसूरि, विजयसेनसूरि और विजयदेवसूरि जैन समाज के गौरव के उत्कर्ष हुए । इन तीनों आचार्यों का मुगल सम्राटों ने खूब सत्कार किया था, इनके ज्ञान और चरित्र से प्रभावित होकर उन्होंने भी जैन धर्म के प्रति अपना ऊंचा आदर भाव व्यक्त किया था।
जिस तरह सम्राट अपने साम्राज्य की रक्षा और वृद्धि के प्रयत्न में आजीवन तल्लीन रहते थे। और देश में एक कोने से दूसरे कोने में घूमकर अपने
1. "नूरदीन जहांगीर सवाई प्रदत्त युग प्रधान पद धारक
सकलविद्या प्रधान युग प्रधान श्री जिनसिंहसूरि ।
प्राचीन जैन संग्रह लेखांक 19 पृष्ठ 27 2. भानुचन्द्रगणि चरित-भूमिका लेखक मोहनलाल दलीचन्द्र देसाई
पृष्ठ 20 3. जहांगीरनामा--हिन्दी अनुवाद ब्रजरत्नदास पृष्ठ 499
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