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ह विदित हुआ तो उसने अहमदाबाद से दोनों आचार्यों को बुलाकर उनका लतफहमी दूर करने तथा सहिष्णुता का व्यवहार करने का परामर्श दिया निजिनविजयजी ने जहांगीर द्वारा आचार्य विजयदेवसुरिजी से भेंट की घटना गडू में बतलाई है: तथा बेचरदासजी ने दिल्ली में:
मनिभानुचन्द्र पूर्व से ही सम्राट के सम्पर्क में थे, विजयदेवमूरिजी के ठोरतप के साथ सुन्दर स्वास्थ्य को देखकर बादशाह ने उन्हें महातपा को 'पाधि दी बादशाह ने स्वयं आचार्य विजयदेव से तर्क करते हुए कहा कि गुरूजनों को विद्यता में सन्देह न करना तथा उनके सिद्धान्तों का अनुसरण एवं पालन राष्य का प्रथम कर्तव्य है। इसके विपरीत आचरण होने पर वे स्वयं अपनी व खोद रहे हैं इस प्रकार दोनों सम्प्रदायों को एक करने में बादशाह ने अत्यधिक चि ली।
इसी प्रकार गुजरात में खरतरगच्छ सम्प्रदाय के साधुओं का प्रभाव बढ़ने र बादशाह ने आचार्य हीरविजयजी तथा भानुचन्द्रजी के तपागच्छ सम्प्रदाय को वशेष संरक्षण देने के लिए गुजरात के सूबेदार को आदेशित किया । स्कृतिक एकता
धार्मिक भेद रखते हुए भी जहांगीर भारतीय जनता में सांस्कृतिक एकता बनाये रखना चाहता था । दशहरा जैसे सांस्कृतिक उत्सवों में वह स्वयं शाही अमले के साथ शामिल होता था । दीपावली उत्सव में अपने सामने जुआ खेले जाने में उसे आपत्ति नहीं होती थी। सम्राट के इस रुख के कारण बहुत से मुसलमान 'हन्दू त्योहारों में शरीक हुआ करते थे।
मुसलमानों को हिन्दू धर्म का परिचय कराने तथा इस प्रकार दोनों सम्प्र. दायों को समीप लाने की दृष्टि से जहांगीर ने भी हिन्दुओं की धार्मिक पुस्तकों का फारसी में अनुवाद कराया । बाल्मीकीय रामायण का अनुवाद राम नाम के शीर्षक से किया गया: ईसाई पादरियों ने जहांगीर की प्रेरणा से बाइबल के अरबी तथा फारसी में अनुवाद किये थे जहांगीर के गुरू अब्दुल रहीम खान खाना ने हिन्दू-मुस्लिम एकता कायम करने का महत्वपूर्ण तथा सफल प्रयास किया । सूरसागर का संकलन भी जहांगीर के समय ही तैयार हुआ था। डॉ. शर्मा ने यह माना है कि सूरदास के प्रत्येक पद के लिए बादशाह उन्हें एक स्वर्ण मुद्रा देता था।
1. देवानन्द महाकाव्य प्रास्ताविक 3 2. वही पृष्ठ 14 3. स्टडीज इन मेडीवल इण्डियन हिस्ट्री
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