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________________ ( 119 ) जहाँगीर ने अपने राज्य में धार्मिक भेद-भाव को कतई पसन्द नहीं किया तथा हिन्दुओं को भी बड़े और ऊचे मनसब दिये इससे बहुत से मुसलमान नाराज रहते थे किन्तु वह किसी धर्म की बुराई भी सहन नहीं करता था । सती प्रथा उसने एकदम बन्द कर दी थी। मादक द्रव्यों की खुलेआम बिक्री रोक दी गई थी धर्म परिवर्तन कराने को भी उसने अपराध घोषित किया था। साम्राज्य विस्तार में हिन्दू सामन्तों का योगदान जहांगीर को विश्वस्त एवं बहादुर हिन्दू सामन्त मिले थे, जो केवल राज्य संचालन में ही उचित परामर्श नहीं देते थे अपितु उसके मनचाहे साम्राज्य विस्तार में भी सहयोगी बन गये थे । मेवाड़ के युद्ध में राजा वसु अहमद नगर के युद्ध में राजा मानसिंह ने उसको सहयोग दिया था । उत्तर पूर्व पंजाब की विजय जहांगीर को राजा विक्रमजीत ने ही दिलाई थी। राजा टोडरमल के पुत्र राजा कल्याण ने उड़ीसा को बादशाह के साम्राज्य में शामिल कराया था। राजा विक्रमजीतसिंह ने कच्छ प्रदेश की जन-जातियों के विप्लव को दबाकर वहां बादशाह का राज्य कायम कराया था। राजा विक्रमजीत का राजा विक्रमार्क के नाम से भी उल्लेख मिलता है। ये अकबर के काल में गजशाला के अध्यक्ष थे, किन्तु चित्तौड़ तथा बंगाल की विजय में अकबर का साथ देने के कारण उनको पांच हजार सेना देकर राजा की उपाधि दे दी गई थी । तुजुक-ए जहांगीर के अनुसार इनका मूल नाम पत्रदास था जिसे अकबर ने राम-रामा की उपाधि दी थी तथा जहांगीर ने ही राजा विक्रमाजीत की उपाधि से विभूषित किया था । रत्नमणि राव ने जाति से खत्री इन राजा विक्रमजीत को ओसवाल जैन माना है तथा उन्हें कुनपाल अथवा उनके भाई सोनपाल से अभिन्न माना है:1 सम्राट अकबर तथा जहांगीर दोनों के दरबार में मुस्लिम से भिन्न सम्प्रदायों के भी बहुत से मन्त्री तथा अन्य उच्च पदों पर आसीन व्यक्ति थे, जैन सम्प्रदाय के मन्त्री कर्मचन्द्र का जितना प्रभाव सम्राट अकबर पर था उतना ही सम्राट जहांगीर पर भी। इनके कारण अनेक जैन आचार्यो, जिनका उल्लेख अगले अध्याय में किया जायेगा, जहांगीर से सम्पर्क करने का अवसर प्राप्त किया था। 1. जैन साहित्य संशोधक खण्ड 3, अंक 4 पृष्ठ 393 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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