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________________ ( 114 ) किया है" जैन साधुओं का राजा पर बहुत अधिक प्रभाव था जिसका कारण उपदेशों के साथ प्रमाण भी थे.1 यह विज्ञप्ति पत्र 1610 ईशवी में लिखा गया था तथा इसके अनुसार आचार्य विजयदेवसूरि के दो शिष्यों विवेक हर्ष एवं उदयहर्ष ने राजा रामदास के साथ सम्राट जहांगीर से भेंट की तथा पर्युषण पर्व के दिनों में पशु वध निषेध का फरमान निकलवाने में समर्थ हुए: इस वर्णन से यह प्रतीत होता है कि अकबर की मृत्यु के पश्चात् उसकी धार्मिक नीतियों की मुस्लिम लोग अवहेलना करने लगे थे, अतः पुराने आदेशों के नवीनीकरण अथवा नये सिरे से निकलवाने की आवश्यकता महसूस की गयी। जिस प्रकार मुनि सिद्धिचन्द्रजी ने सम्राट जहांगीर को अपने व्यक्तित्व से प्रभावित किया था उसी प्रकार विजयदेवसूरिजी ने अपने तप से श्री विजयसेनसूरिजी के कारण से सम्राट ने आचार्य विजयदेवसूरिजी का पट्टाभिषेक कराया था तथा सम्राट ने उन्हें महातपा की उपाधि से सम्मानित किया था श्री विजयदेव जी ने अनेक स्थानों पर मन्दिरों का निर्माण करवाया तथा उनमें जिन प्रतिमायें प्रतिष्ठित करायी थी: सम्राट जहांगीर जैन आचार्यों को आमन्त्रित कर उनसे धामिक विषय 1. That there were Jain teacher who exercised considerable imfluence on Jahagir is demonstrated not only by this epistle but by other evidences as well. एन्शिएन्ट विज्ञप्ति पत्र पृष्ठ 20 2. वही पृष्ठ 23 3. अय श्री विजयदेवसूरयाडहम्मदावादे प्रतिष्ठाद्वयं, पत्तने प्रतिष्ठाँचतुष्टयं स्तम्भतीर्यों प्रतिष्ठात्रयं बहुद्रध्यव्ययपूर्वकं कृत्वा स्वजन्म भूमौ श्रीइलादुग चतुर्मासी चक्रः । ततोडन्यदा श्रीमण्डपाचले श्री अकबरपातिशाहिपुत्रा जिहांगारिश्रसिलेमशाहिः श्रीसूरीन स्तम्भतीर्थतः सबहुमानमाकार्य गुरूणा मूर्ति रूपस्फूर्ति च वीक्ष्य वचनागोचरं चमत्कारमावान् । बिजयदेव माहात्म्यम्-श्री वल्लभपाठक पृष्ठ 131 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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