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र वार्तालाप करता था रता था:
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तथा जैन साधुओं को यथोचित सम्मान प्रदान
ईसाई लोग जहांगीर के पास धार्मिक संरक्षण के लिए उतना ही नहीं जितना 'लैंड अथवा पुर्तगाल के व्यवसाय को प्राप्त करने के लिए गये थे । इन दोनों ही शों में भारत में व्यावसायिक केन्द्र स्थापित करने की स्पर्धा थीं । पुर्तगाली लोग अग्रेजों से पहले ही गोआ में जम चुके थे अंग्रेजों ने गुजरात में सूरत को चुना था । जहांगीर के काल में इन कार्य हेतु इंग्लैंड से विलियम हॉकिन्स गये थे, जिसने जहां गीर से मित्रता कर सूरत में अपना मुख्यालय कायम करने की इजाजत प्राप्त की थी हॉकिन्स की जहांगीर से मुलाकात के बारे में एच. जी. रॉबिन्स ने लिखा हैराजा बिल्कुल शान्त दिखाई देता था उसने अपने हाकिम और दरबारियों को एक सील बन्द पत्र लिखकर सूरत में भेजा जिसका जिकर हमें मुकराबखान का अंग्रेजों के प्रति व्यवहार प्रदर्शित करता है: 2 किन्तु हॉकिन्स अधिक समय तक बादशाह का कृपापात्र न रह सका । गोआ के पुर्तगालियों ने जहांगीर के दरबार में ऊंचे पद के लोगों से मित्रता कर रखी थी तथा वे सदा अग्रेजों के प्रति ईर्ष्यालु रहते थे इन लोगों ने अवसर पाकर हॉकिन्स की शिकायत कर दी तथा उसे जहांगीर का कोपभाजन बनकर देश छोड़ना पड़ा ।
किन्तु यह मामला युद्ध व्यावसायिक था । इसमें धार्मिक प्रेरणा कतई नहीं थी । दूसरी ओर डाक्टर शर्मा पाश्चात्य लेखकों के हवाले से लिखते हैं कि"बादशाह जहांगीर की ओर से ईसाई पादरियों को तीन से सात रुपये तक
1. ततः समये श्रीगुरूभिः समं धर्मगोष्ठीक्ष्ण विचित्रधर्मवाताः पृष्ठा साक्षाद गुरूस्वरूपं निरूपम द्रष्टा च स्वपक्षीयैः परै प्राक् किन्चिद व्युदग्राहितडपि शाहिस्तदा तत्पुण्य प्रकर्षेण हर्षितःसन श्रीहीरसूरीणां श्री विजयसेन सूरीणां च पट्ट े एत एव पट्टधराः सर्वाधिपत्यभाजो भवन्तु, विजयदेव माहात्म्यम् --- श्रीवल्लभपाठक पृष्ठ 131
2. "The king now seemed quite won over. He gave Hawkings his commission, written under his golde. Seal to be sent to Surat, together with a stinging reprorf to Mukarrable Khan for his bad behaviour to the English." सम नोटस ऑन विलियम हॉकिन्स - आर. जी. भण्डारकर कममरेटिव ऐस्सेज पृष्ठ 285
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