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________________ ( 113 ) विचारों से जैन सम्प्रदाय पर विपरीत प्रभाव पड़ा कुछ लोगों ने तो मानसिंह को सम्प्रदाय का नेता मानने से इन्कार कर दियाः श्रीराम शर्मा ने तुजुक-ए जहांगीरी का हवाला देते हुए लिखा है कि सम्राट ने जैनियों को राज्य की सरहद से बाहर जनकल जाने के आदेश दिये थे परिणामस्वरूप इस काल में जैनियों ने राजपूताने में राजपूत राजाओं के आश्रम में शरण प्राप्त की: किन्तु अन्य किसी स्रोत से इस तथ्य की पुष्टि नहीं होती इसके विपरीत जिस समय (जहांगीर के अभिषेक के 12 वें वर्ष) इस प्रकार के आदेश दिये जाने की बात कही गई है उस समय जहांगीर के यहां मुनि सिद्धिचन्द्र जी का निवास था जिसे सम्राट ने "खुशफहम" की उपाधि दी थी। यहां यह उल्लेखनीय है श्री चिमनलाल डाहया भाई दलाल ने अपने एक लेख हीरविजयसूरि और "द जैन एट द कोर्ट ऑफ अकबर" में सम्राट अकबर द्वारा मुनि सिद्धचन्द्र को "खुशफहम" की उपाधि से विभूषित किया गया बतलाया है "महामहोपाध्याय सिद्धिचन्द्र ने कादम्बरी उत्तरार्थ की टीका की जिस पर राजा अकबर ने उन्हें "खुश-फहम" की उपाधि दी वह उनके एक सौ आठ बातों (अष्टावधान) एक समय में करने से बहुत प्रसन्न हुआः जबकि डाक्टर हीरानन्द शास्त्री ने एन्शिएन्ट विज्ञप्ति पत्र की प्रस्तावना में जहांगीर द्वारा सिद्धिचन्द्र को “खुशफहम" नादर जमा" उपाधि दिये जाने का उल्लेख है तथा इसकी पुष्टि डाक्टर बेनीप्रसाद ने भी की है-"यह वस्तुतः अब भी विवाद का विषय है क्योंकि दोनों पक्षों से सम्बन्धित अभिलेखीय प्रमाण है मालपुर के चन्द्रप्रभ मन्दिर के मकराना पत्थर के शिलालेख में उस मन्दिर हेतु भूमि प्राप्त करने के सिद्धिचन्द्र के प्रयास के आलेख के साथ लिखा है "श्री अकबर प्रदत्त खुशफहमादिनाम्बां पण्डित सिद्धिचन्द्राण्य इस उपाधि से साफ जाहिर होता है कि बादशाह अकबर मुनि सिद्धिचन्द्र जी के व्यक्तित्व से बहुत अधिक प्रभावित था बादशाह पर जैन मुनियों के प्रभाव को डॉ. हीरानन्द शास्त्री 1. द शिलिजियस पॉलिसी ऑफ मुगल एम्परर-एस. आर. शर्मा पृष्ठ 67 2. वही पृष्ठ 67 3. “Thus ends the Commentary of the latter half of Kada. nbary composed by Mahamahopadhyaya Siddhichandra on whom the title of khushfahm was conferved by the emperor Akabar, who was pleased with him by his feats of performing 108 thing at a time. जैन शासन दीवाली नो खास अंक पृष्ठ 122-23 4. एन्शिएन्ट विज्ञप्ति पत्र पृष्ठ 20 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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