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अतः इस सम्पर्क में भी विशेष अन्तर यह देखा जा सकता है कि अकबर म गुरूओं को अपने दरबार में स्वयं आमन्त्रित करता था तथा अनेक धर्म तय सम्प्रदाय की अच्छी बातें जानने के लिए उत्सुक रहता था, जबकि जहांगीर भेंट करने के लिए विभिन्न सम्प्रदायों के आचार्य एव गुरू उत्सुक रहते थे तारि वे भारत में अपने धर्म या सम्प्रदाय के लिए राजकीय संरक्षण प्राप्त कर सके
और कम से कम उसे राजकीय प्रकोप से बचा सकें क्योंकि जहांगीर पर कट्टर पन्थ मुसलमानों का प्रभाव सुविदित हो गया था।
ईसाइयों के जहांगीर से मैत्री सम्बन्ध बहुत प्रगाढ़ थे अकबर के दरबार प्रथम ईसाई प्रतिनिधि मण्डल के नेता फादर रिडोल्फो एक्वाविकी ने जहांगीर से मित्रता स्थापित कर ली थी जहांगीर · ईसाइयत से इतना प्रभावित हो गया था। कि उसने ईसाई प्रतीकों को अपने गले में पहिन रखा था। तथा अपने पत्रों पर भी अंकित करता था। ईसाइयों के प्रति पक्षपात के लिए स्पेन के राजा फिलिप ततीय ने जहांगीर को धन्यवाद का एक पत्र भी लिखा थाः
इसके विपरीत सिख गुरू अर्जुनदेव के साथ जहांगीर के सम्बन्ध कटुता के थे, जिसका मूल कारण विद्रोही शहजादा खुसरो की सहायता थी इस राजनैतिव कारण ने जहांगीर की धार्मिक सम्मान व सहिष्णुता की भावना को दबा दिया। तथा उसने “गुरू ग्रन्थ साहब" से ऐसे पदों को हटाने का आदेश दिया । जिनमें हिन्दू अथवा इस्लाम धर्म की मान्यताओं के विपरीत बातें हों।
जैन आचार्यों के प्रति सन्देह तथा कुटिल दृष्टि का कारण भी खुसरो हो । जैन मानसिंह ने इस समय बीकानेर के राजा रामसिंह को भविष्यवाणी के रूप सूचित किया कि जहांगीर दो वर्ष पश्चात् दुनियां से विदा हो जायेगा इस निर्भय होकर राजारामसिंह ने शहजादा खुसरो की मदद की किन्तु न केवा रामसिंह व मानसिंह अपितु जैन सम्प्रदाय के दुर्भाग्य से जहांगीर ने लम्बी उ पाई थी तथा राजनैतिक दखलंदाजी के लिए उसने मानसिंह को तो दण्डि किया ही साथ ही अन्य जैन आचार्यों को भी सन्देह की दृष्टि से देखने लगा विरोधी कट्टरपन्थियों को जहांगीर के कान भरने का अच्छा अवसर मिल गय तथा उसे समझाया गया कि जैन मन्दिर राजनीतिक षडयन्त्र के केन्द्र हैं। जै मुनियों का दिगम्बर रहना सामाजिक मर्यादा के विपरीत हैं । सम्राट के ।
___1. मुगल एम्पायर इन इण्डिया-एस. आर. शर्मा पृष्ठ 307
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