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इसी तरह तुलादान प्रथा के बारे में लिखा है कि सम्राट अकबर जो तथा उदारता के प्रकट करने के स्रोत थे, इस प्रथा के समर्थक थे वर्ष में दो अनेक प्रकार के धातु, सोना, चांदी तथा अन्य मूज्यवान वस्तुओं से तुलाद करते थे, एक बार सौर तथा एक बार चान्द्र के अनुमार और कुल मूल्य को एक लाख रुपये होता था। फकीरों तथा दीनों में बंटवा दिया करते थे । हम यह वाषिक प्रथा पालन करते है । और उसी प्रकार तौलवाते तथा फकीरों बंट वा देते हैं:
यह जहांगीर का सौभाग्य का कि उसे एक शान्त एवं समृद्ध शासन राज करने के गिए मिला था। डॉक्टर एस. आर. शर्मा के शब्दों में-"इसको सम्मि लित करते हुए यह कहना चाहिए कि राजा अकबर ने जो शान्ति व वैभव अप उत्तराधिकारी को समर्पित किया वह हम जहांगीर के जीवन को देखते हुए पू तरह जान सकते हैं:
(ब) शिक्षा
अन्य धर्मों के प्रति उदारदृष्टिकोण बनाये रखने के लिए जहांमीर के अब्दुल रहीम खान का भी कम महत्व नहीं है । अब्दुल रहीम अरबी, फारस तुर्की, संस्कृत तथा हिन्दी के बहुत अच्छे विद्वान थे तथा साहित्यिक अभिरुचि व्यक्ति थे। डॉक्टर एस. आर. शर्मा ने उन्हें अपने युग के श्रेष्ठ विद्वानों में मानों अपनी किशोरावस्था में सलीम (जहांगीर) ने अब्दल रहीम के चरित्र एवं बुद्धि परिष्कार पायाः
(स) पत्नी
जिस राजपूत घराने की जहांगीर की माता थी उसी घराने की उसे पा भी प्राप्त हुई । परिणामतः हिन्दू धर्म उसके जहन तथा हरम दोनों में प्रय कर गया था। इस आम्बेर की राजकुमारी मानबाई के अलावा जहांगीर
1. वही पृष्ठ 299 2. Add to this, the lagary of peace and wealth that Aka
had bequeathed to his immediate successor and have a fairly complete picture of the favouri auspices under which Jahangir opened his prosper Career.
मुगल एम्पायर इन एण्डिया-श्रीराम शर्मा पृष्ठ 264 3. मुगल एम्पायर इन इण्डिया-एस. आर. शर्मा पृष्ठ 265
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