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चतुर्थ अध्याय
जहांगीर की धार्मिक नीति (अ) जहांगीर को नीतियों को प्रभावित करने वाले तत्व
विरासत--
जहांगीर धार्मिक सहिष्णुता के प्रतीक अकबर महान का पुत्र था । अतः के प्रति सम्मान की भावना रखते हुए दरबार में अकबर के द्वारा स्थापित पराओं को मान्यता देते हुए गुण ग्राहिता के स्वभाव के कारण जहांगीर मे त धार्मिक सम्प्रदायों तथा उनके आचार्यों के प्रति सम्मान का भाव पूर्ववत् पे रखा । जहाँगीर की धमनियों में हिन्दू माता का रक्त प्रवाहित था जिसके नुगत संस्कारों से वह अप्रभावित नहीं रह सकता था । अतः अपने दरबार सने हिन्दू मनसबदारों के प्रति पूर्ववत् विश्वास व सहानुभूति का भाव रखा। सम्प्रदायों के पूजा-स्थलों के रख-रखाव तीर्थयात्रा कर की माफी, पशु-वध ध जैसे अकबर के आदेशों को जहांगीर ने यथावत् जारी रखी । अकबर के न काल में जहांगीर उसके अनुकूल व्यवहार नहीं कर सका किन्तु अकबर वृत्यु के पश्चात् नीतियों के पालन में वह अकबर के प्रतिकूल भी नहीं जा जैसा कि मांसाहार व जीव-हिसा निषेध के बारे में अकबर के समय से 'आ रही है कि "रविवार तथा वृहस्पतिवार को कोई पशु न मारे जायें
न हम मांस खायें । विशेषकर सूर्यवार को इसलिए कि हमारे आदरणीय | का उस दिन पर इतना सम्मान था कि उस दिन बे मांस खाने में अरूचि । थे । और उन्होंने किसी जीव की हत्या करने को मना कर दिया था। के सूर्यवार की रात्रि को उनका जन्म हुआ था। यह कहा करते थे कि वह अच्छा रहता है कि लोगों को हत्याकारिणी प्रकृति से सभी पशुओं को कष्ट टकारा मिल जाता हैं । वृहस्पतिवार हमारी राजगद्दी का दिन है इस दिन के हमने आज्ञा दे दी कि जीव हत्या न की जाये"1
1. जहांगीरनामा-हिन्दी अनुवाद ब्रजरत्नदास पृष्ठ 254
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