SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 141
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 108 ) उपरोक्त विवरण के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अकबर पर जैन सन्तों का इतना प्रभाव प्रकट हो जाने के बाद इस विषय में किसी को सन्देह नहीं रह जाता कि यद्यपि अकबर ने कभी अपने आपको जैन कहकर नहीं पुकार था, तो भी वह आचरण से जैनी जरूर था । जो व्यक्ति जन्म से मांसाहारी रहा था जिसका प्रत्येक अवयव बाल्यावस्था हो से मांसाहार से परिपुष्ट हुआ था, उसी व्यक्ति ने जैन साधुओं के सहवास में आकर जैन साधुओं के उपदेशानुसार और खास “ईद” के दिन भी पशु हिंसा बन्द कर दी थीं, मांसाहार त्याग दिया था और वर्ष भर में छः महीने छः दिन तक पशु-हिंसा नहीं करने का ढिढोरा पिटवा दिया था, उस शख्स के लिए जैन होने में शंका करना स्वयं को जैन धर्म से अजान जाहिर करना है जैन धर्म का मूल सिद्धान्त " अहिंसा धर्म" जो व्यक्ति पालता ही नहीं था । बल्कि औरों से भी अपनी सत्ता के आधार पर पलवाता था । उसको जैनी सिद्ध करने के लिए शायद अब और किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy