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उपरोक्त विवरण के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि अकबर पर जैन सन्तों का इतना प्रभाव प्रकट हो जाने के बाद इस विषय में किसी को सन्देह नहीं रह जाता कि यद्यपि अकबर ने कभी अपने आपको जैन कहकर नहीं पुकार था, तो भी वह आचरण से जैनी जरूर था । जो व्यक्ति जन्म से मांसाहारी रहा था जिसका प्रत्येक अवयव बाल्यावस्था हो से मांसाहार से परिपुष्ट हुआ था, उसी व्यक्ति ने जैन साधुओं के सहवास में आकर जैन साधुओं के उपदेशानुसार और खास “ईद” के दिन भी पशु हिंसा बन्द कर दी थीं, मांसाहार त्याग दिया था और वर्ष भर में छः महीने छः दिन तक पशु-हिंसा नहीं करने का ढिढोरा पिटवा दिया था, उस शख्स के लिए जैन होने में शंका करना स्वयं को जैन धर्म से अजान जाहिर करना है जैन धर्म का मूल सिद्धान्त " अहिंसा धर्म" जो व्यक्ति पालता ही नहीं था । बल्कि औरों से भी अपनी सत्ता के आधार पर पलवाता था । उसको जैनी सिद्ध करने के लिए शायद अब और किसी प्रमाण की आवश्यकता नहीं ।
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