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32. श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री
(हीरविजय) य मूरिभिः स्वशिष्ट सौभाग्य भाग्य वैराग्य........ 33 (औदार्य) प्रभृति गुण ग्राम........हनीयमहामणिगुण
रोहण क्षोणी34. (तलमण्ड) ण गुर्वाज्ञा पालनक........वनीकृतानेक मण्डल
महाडम्बर पुरस्सर............प्रतिष्ठा, प्रतिष्ठा पृष्ठ............क्षी वशीकर कार्मण प्राज्य प्रवृज्या प्रदा........कर्म निर्माण................माणभव्य जनमन
पवित्र क्षैम ओधिबीजवपन प्रधान..........तिरस्कृत सुधार सबांखिलास राजमान तत्तदेशीय दर्शनस्प्रहया........मनोरथ प्रथा प्रतिथ कल्पलता प्रबर्दन सुपर्व
पर्वतायमान विबुध जन39. ........कीति........पुरन्दर महोपाध्याय श्री 5 श्री
कल्याण विजयगणि परिवृतै40. .......श्री इन्द्र बिहार प्रसाद प्रशस्तिः पण्डित लाभविजयगणि
कृता लिखिता पण्डित सोमकुशल (ग. णिना) 41. भइरव पुत्र मसरफ भगतू महवाल 2
यह शिलालेख 1 फुट, 71 इन्च लम्बे और 1 फुट 71 इन्च चौड़े पत्थर पर उत्कीर्ण हैं । दाहिने ओर के ऊपर के पत्थर के टूट जाने से और नीचे के भाग के बायीं ओर के भाग के अक्षर नष्ट हो जाने के कारण अब यह खण्डित रूप में ही हमें उपलब्ध है।
इसकी प्रथम पंक्ति के नष्ट भाग में विक्रम सम्वत् दिया था, दूसरी पंक्ति में शक सम्वत् 1509 दिया है, इससे यह शिलालेख वि. सम्वत् 1644 का निश्चित होता है।
इस शिलालेख में तीसरी से दसवीं पंक्ति तक तत्कालीन बादशाह अकबर की प्रशंसा की गई है। इस प्रशंसा में अकबर से श्रीहीरविजयसूरि की भेंट से लेकर अकबर द्वारा जीव-रक्षा के लिए निकाले गये फरमानों तक का उल्लेख है। नवीं पंक्ति से ज्ञात होता है कि अकबर ने वर्ष में 106 दिन जीव-हिंसा न करने की आज्ञा निकाली थी। इनमें 40 दिन बादशाह के जन्ममास सम्बन्धि, 48 दिन रविवार के और 12 दिन पयूषण पर्व के हैं ।
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