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________________ ( 106 ) 16. रीना पुत्र सं. विमलदास द्वितीय भार्या नगीनो स्त्र द्वितीय लघु भातृ सं. स्वामीवास भार्या........ 17. का. पुत्र स. जगजीवन भार्या मोतां पुत्र स. कचरा स्व. द्वितीय पुत्र स. चतुर्भुज प्रभृति समस्त कुटुंबयु........(ब) इराट दंग स्वाधिपत्याधिकारं बिभ्रता स्वपितृनाम प्राप्त शैलमय श्रीपार्श्वनाथ ? रीरीभय स्वनाम धारित श्री श्री........ 19. चन्द्रप्रभं 2 भ्रातृ अजयराज नाम धारित श्री ऋषवदेव 3 प्रभृति प्रतिमालं कृतं मूलनायक श्री विमलनाथ बिबि 20. स्व. श्रेयसे कारित बहुलतम वित्तव्ययेन कारिते श्री इन्द्र बिहारा पर नाम्नि महोदय प्रसादे स्व. प्रतिष्टा (ष्टा) यां 21. प्रतिष्टि (ष्टि) तं च श्री तपागच्छे श्री हेमविमल सूरि तत्पट्टलक्ष्मीकमला श्री कण्ठस्थलालंकार हारकृत स्व. गुर्वाज्ञाप्ति........ 22. सहकृत कुमार्ग पारावारपतज्जंतु समुदरण कणधाराकार सुविहित साधुमार्ग क्रियोद्वार श्री आणंद........ विमलसूरि पट्ट प्रकृष्टतम महामुकुट मण्डन चुडामणीयमान श्रीविजयदानसूरि तत्पट्टपूर्वांचल तटीय........ 25. ........करण सहस्त्र किरणानुमारिभि स्वकीय वचन चातुरी चमत्कृत कृत काश्मीर कामरूपस्ता (न) काबिल बदकता दिल्ली मरूस्थली गुर्जर त्रामालय मण्डल प्रभृतिकाने के जनपद........ आचरण नैक मण्डलाधिपति चतुर्दशच्छत्रपति संसेव्यमान चरण हमाउ नन्दन जलालु... 28. दीनपातसहिं श्री अकबर सुरत्राण प्रदत्त पूर्वोपवर्णितामारि फुरमानं पुस्तक भांडागार प्रदान बन्दि........ 29. .........दि बहमान सर्वदोपगीयमानं सर्वत्र प्रख्यात जगद्गुरू विरूदधारिभिः । प्रशांतता निःस्प्रहता 30. ........तांसंविज्ञता युग प्रधानता ध्येनगुण गणानुकृत प्राक्तन व्रज स्वाम्यादि सुरभिः सुवि31. (हितसिरोम) णिमुग्रहीत नामध्येय भट्टारक पुरन्दर परमगुरु मच्छाधिराज श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री श्री Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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