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कि उन्होंने सम्राट के धार्मिक विचारों पर भारी प्रभाव डाला, हीरविजयसूरि; वजयसेन, भानुचन्द्र उपाध्याय और जिनचन्द्र थे। सन् 1578 के बाद एक का दो जन गुरू सम्राट की राजसभा में सदेन रहा करते थे। प्रारम्भ में उसने अर्थात् सम्राट अकबर ने) जैन सिद्धान्तों की शिक्षा फलेहपुर सीकरी में प्राप्त की थी और जैन गुरूओं का बह अत्यन्त श्रद्धा और आदर के साथ स्वागत करता था
जयचन्द्र विद्यालंकार लिखते हैं-"जैन और हिन्दुओं के प्रभाव से उसने सम्राट ने) गौ-हत्या की मुमानियत कर दी, विशेष अवसरों पर उसने कैदियों को छोडना शुरू कियाः
बक्रिम चन्द्र लाहिडी ने अपने सम्राट अकबर" नामक ग्रन्थ में लिखा है कि “सम्राट रविवार में दिन, चन्द्र और सूर्य प्रहण के दिन और अन्यं भी कई त्यौहारों के दिनों में किसी प्रकार का मांस नहीं खाता। रविवार तथा त्योहारों के दिनों में पशु-हत्या की खास मनाही करवा दी थी।
न केवल भारतीय लेखकों ने अपितु अंग्रेजी लेखकों वे भी अकबर पर जैन सन्तों के प्रभाव को स्वीकार किया। सुप्रसिद्ध इतिहासकार विन्सेन्ट सिष में स्पष्ट लिखा है कि "अकबर का लगभग पूर्ण रूप से मांस का परित्याग करना एवं अशोक के समान क्षुद्र जीव हिंसा का निषेध करने के लिए सस्त आज्ञाओं का जारी करना अपने जैन गुरूओं के सिद्धान्त के अनुसार साबरम करने के ही परिणाम थे: एक अन्य स्थान पर भी स्मिथ ने लिखा है "मांसाहार पर वारशाह की बिल्कुल रूचि नहीं थी। और अपनी पिछली जिन्दगी में तो जब से वह
1. ए शॉर्ड हिस्ट्री ऑफ मुस्लिम रूप इन इण्डिया-ईश्वरीप्रसाद
पृष्ठ 406 2. इतिहास प्रवेश- श्रीजमचन्द्र विद्यालंकार पृष्ठ 353 3. सम्राट अकबर गुजराती अनुवाद पृष्ठ 274 4. Akbar's action in abstaining almost wholly from eating
meat and issuing stringent prohibitions, resembling those of Ashoka, restricting to the narrwrest possible limits the destruction of animal life, certainly was taken in obedience to the doctrine of his Jain teachers. अकबर द ग्रेट मुगल-विन्सेंट-ए-स्मिथ पृष्ठ 168
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