SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 137
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ( 104 ) जैनों के समागम में आया। तभी से उसने इसका सर्वया ही त्याग कर दिया: ' steer हॉनेस क्लाट बर्लिन ने अपने लेख में लिखा है कि होरविजयसूरि ने अकबर को जैन बनाया: उपरोक्त विवरण के आधार पर हम इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, कि बादशाह से जीवदया के कार्य करवाने में और मांसाहार छुड़वाने में जैन साधुओं के धर्मोपदेश ही महत्वपूर्ण सिद्ध हुए। जिस गौ वध को बन्द करने में आज सारा भारत त्राहि-त्राहि कर रहा है फिर भी उसमें सफलता नहीं मिल रही उमी पशु वध को मुगल बादशाह अकबर ने जैन सन्तो के प्रभाव से वर्ष में छः महीने के लिए पूर्णतः बन्द कर दिया था । बादशाह पर जैन धर्म का इतना अधिक प्रभाव देखकर कुछ लोग तो उसे जैनी समझने लग गये थे, यहाँ तक कि कई विदेशी मुसाफिर जो उस समर अकबर के दरबार में आये, उसका आचरण देखकर उसे जैनी समझने लगे । इसका एक प्रमाण हमें स्मिथ की " अकबर" नामक पुस्तक से मिलता है । स्मिथ ने इस पुस्तक में पिनहरो नाम के एक पोटुगीज पादरी के पत्र के उस अंश को उद्धृत किया है जिससे इस कथन की प्रमाणिकता सिद्ध होती है पत्र में पादरी ने लिखा है- "वह जैन मत का अनुयायी है 8 इस तरह विदेशियों को भी अकबर के व्यवहार से लगा कि वह जैन सिद्धांतों का अनुयायी है । अन्त में अकबर द्वारा स्वयं मांसाहार का त्याग और सारे राज्य में जीवहिंसा निषेध की पुष्टि के लिए हम यहां वैराट के शिला लेख को उद्धृत करेंगे । राजस्थान में दिल्ली से 105 मील दक्षिण-पश्चिम तथा जयपुर से 41 मील उत्तर में वैराट नामक एक ग्राम है, इस ग्राम में पार्श्व नाथ का एक मन्दिर है । इस मन्दिर के कम्पाउण्ड की दीवाल में शक सम्वत् 1509 ( ईसवी सन् 1587 ) 1. He Cared little for flesh food and gave up the use of it almost entirely in the later years of his life, when he came under Jain influence. अकबर द ग्रेट मृगल - विन्सेन्ट -ए-स्मिथ पृष्ठ 335 2. जैन गुर्जर कवियों भाग 2 - मोहनलाल दलीचन्द देसाई पृष्ठ 725 3. अकबर द ग्रेट मुगल - स्मिथ पेज 262 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy