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आनन्द के साथ निकले: 1
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अकबर कहा करता था कि यह उचित नहीं है कि एक आदमी अपने पेट को पशुओं की कब्र बनाये :
इसी तरह एक अन्य स्थान पर अकबर ने कहा है कि "यदि मेरा शरीर इतना बड़ा होता कि मांसाहारी जीव सिर्फ मेरे शरीर को खाकर ही तृप्त हो जाते और दूसरे जौंवों के भक्षण से दूर रहते तो मेरे लिए यह बात बड़े सुख की होती । या मैं अपने शरीर का एक अंश काटकर मांसाहारियों को खिला देता और फिर से वह अंश प्राप्त हो जाता, तो मैं बड़ा प्रसन्न होता 3
"
अकबर के उपरोक्त विचारों से उसके दया संबंधित विचारों का पता चलता है मांसाहारियों को अपना शरीर खिलाकर तृप्त करने और दूसरे जीवों को बचाने की भावना उच्चकोटि की दयालु वृत्ति रखने वाले व्यक्ति ही कर सकते हैं, यह सब जैन सन्तों का ही प्रभाव था। जैन सन्तों के इस महत्व को अकबर के दरबार में रहने वाला कट्टर मुसलमान बदायूँ नी भी स्वीकार करता है अकबर की मांस और पशु-वेध में अरूचि के सम्बन्ध में उसने लिखा है कि "इस समय बादशाह ने अपने कुछ नवीन प्रिय सिद्धान्तों का प्रचार किया था । सप्ताह के पहले दिन में प्राणी वध निषेध की कठोर आज्ञा थी कारण कि यह सूर्य पूजा का दिन है। फरवरदीन महीने के पहले 18 दिनों में आबान के पूरे महीने में (जिसमें बादशाह का
1. Men should annually refrain from eating meat on the anniversary of the month of my accassion as a thanks giving to the almighty, in order that the year may pass in prosperity.
आइने अकबरी – एच. एस. जेरेट भाग 3 पृष्ठ 446
2. It is not right that a man should make his stomach the grave of animals.
आइने अकबरी एच. एस. जैरेट: भाग 3 पृष्ठ 443
3. Would that my body were so vigorous as to be of service to eaters of meat who would this forego other animal life, or that as I cut of a piece for their mourishment, It night he replaced by another.
आइने अकबरी अनुदित एच. एस. जैरेट भाग 3 पृष्ठ 445-46
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