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नमें से अमुक अमुक दिनों में बादशाह ने अपने समस्त राज्य में जीव-हिंसा का नषेध किया था और स्वयं भी इन दिनों मांसाहार नहीं करता था । न केवल जैन पितु जैनेतर लेखकों ने भी इस बात को स्वीकार किया हैं। अकबर का सर्वस्व गना जाने वाला शेख अबुल फजल लिखता है
___ "सम्राट अपने ज्ञान के कारण मांस से बहुत कम अभिरुचि रखता है, हा और बहुधा मोतियों से भरी हुई जुबान से कहीं करता है कि यद्यपि मनुष्य के लिए भांति-भांति के व्यंजन विद्यमान हैं तथापि वह अपनी अज्ञानता और निर्दयता से प्राणियों के सताने में मन लगाता है तथा उनकी हत्या करने और खाने से हाथ नहीं खींचता। कोई व्यक्तिं पशुओं के न सताने की खूबी पर अपनी 'आंखें नहीं खोलता वरन अपने को जानवरों की कन्न बनाता है। यदि उसके कन्धों पर संसार का बोझ न होता तो एक दम मांस खाना छोड़ देता, तथापि उसका विचार यह है कि शनैः शने उसे नितान्त त्याग दे। कुछ दिनों तक वह अपने समय के लोगों की चाल पर चलता रहा, परन्तु बाद को उसने पहले कुछ शुक्रवारों को मांस खाना बन्द किया और फिर रविवारों को। किन्तु अव प्रत्येक और मांस की प्रतिपदा रविवार, सूर्य और चन्द्र ग्रहण के दिन, संयम वाले दो दिवसों के बीच का दिन रजवमास के सोमवार, हरइलाही महीने के उत्सव का दिन फरवरीदीन का पूरा महीना और समस्त आबान मास जो कि सम्राट का जन्म मास है । संयम के दो दिनों में और बढ़ा दिये गये हैं । आबान मास के लिए यह निश्चय हुआ था कि सम्राट की अवस्था के जितने साल हों, उतने दिन वह उक्त महीने में मांस न खाये, परन्तु-अब उसकी अवस्था के साल आबान मास के दिनों से अधिक हो गये हैं, इसलिए आजुर महीने के भी कुछ दिनों में उसने व्रत रखा परन्तु इस समय उक्त मांस के सभी दिन सूफियाना (सयमवाले) हो गये । ईश चिन्तन की अधिकता के कारण उनमें प्रतिवर्ष वृद्धि होती जा रही हैं और वह पांच दिन से कम नहीं होती।
अकबर द्वारा राज्याभिषेक के पूरे महीने मांसाहार निषेध का जो वर्णन न ग्रन्थों में मिलता है उसकी पुष्टि आइने अकबरी से भी होती है, अकबर कहा करता था "मेरे राज्याभिषेक की तारीख के दिन, प्रतिवर्ष ईश्वर का उपकार जानने के लिए किसी भी मनुष्य को मांस नहीं खाना चाहिये, जिससे सारा वर्ष
1. आइने अकबरी हिन्दी अनुवादक-रामलाल पाण्डेय अंक 20 पृष्ठ
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