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________________ ( 96 ) अव इस "पहले मृतक के धन को राजा कुमारपाल ने छोड़ा था और समय अकबर बादशाह ने कर सम्बन्धित धन को छोड़ दिया है पहले गायों बन्धन मुक्त अर्जुन ने किया था, और इस समय वध-मुक्त अकबर ने किया "1 इर कोष में आगे लिखते हैं कि "सब प्रकार से जिन्द्य ऐसी मुदिरा का इस बादशाह ने निषेध कर दिया बादशाह ने जुआ खेलना बन्द कर दिया । शिकार खेलना भी छोड दिया: वीर पुरुषों को यह प्रतिज्ञा होती है कि- जो अपराधी शस्त्र उठाकर बड़ा अपराध करता है उसी पर वे अपना शस्त्र चलाते हैं, औरों पर नहीं, तब मैं शूरवीरों में शिरोमणि कहलाकर इन निरपराध और भयाकुल पशुओं पर कैसे अपना शस्त्र चलाऊ ? यह विचार कर बादशाह सभी प्राणियों पर रहम करता है | 3 अकबर द्वारा जीव हिंसा का निषेध और मांसाहार में उसकी अरुचि का उल्लेख कितने ही स्थलों पर मिलता है पट्टावली समुच्चय में लिखा है— "छ: महीने अमारि घोषणा की. 4 1. "मृतस्वमोक्ता तु कुमारपाल: 2. शुल्कस्तवमोक्ता तु फतेपुरेशः । पुरा गवां बन्दिमपचकार 4. धनन्जयः साम्प्रतमेष एवं || कृपारस कोष - शान्तिचन्द्रजी श्लोक 98 पृष्ठ 16 "मयं सर्वनिद्य न्यतेधत् । दयुतं स्वदेशे व्यसनं न्यषेधत् । वनेन तस्मान्मुमुचे भृगव्यम् । कृपारस कोष शांतिचन्द्रजी श्लोक 102, 106, 107 3. शस्त्रग्रहेण धरिलब्धसमन्तुताके शस्त्रं विमोच्यमिति वीरजनप्रतिज्ञा । जन्तुनन्तुदरितान् किहं निहन्मि वीरावतंस इति धीरनुकम्पते सौ ॥ कृपारसकोष - श्री शांतिचन्द्रजी श्लोक 108 "षाणमासिका अमारि प्रवर्तनं । महोपाध्याय श्री धर्म सागर गणिविरचित श्री पट्टावली समुच्चय Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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