________________
( 93 )
यो थाः' इसके विषय में भानुचन्द्र गणिचरित में लिखा है 1 खम्भात में एक वर्ष क मछलियां व जानबरों का वध और लाहौर में उस पर्व के दिन जानवरों के घकी मनाही थी.
अषाढ़ी अष्टान्हिका फरमान जो आचार्य जिनचन्द्रसूरिजी ने अकबर से भया था उसके खो जाने से जिनसिंह सूरिजी ने पुनः सम्वत् 1660 (सन् 1603) उसे अकबर से प्राप्त किया।
अकबर के दरबार में अन्य जैन साधू पदमसुन्दर---
हीरविजयसूरिजी से मिलने से पहले सम्राट अकबर नागापुरीय तपागच्छ के पदमसुन्दर गणिजी से मिला। जिन्हें अकबर बहुत आदर देता था। जब अकबर हीरविजय सूरिजी से मिला तो पदमसुन्दरजी के बारे में इस तरह विचार प्रकट किये" कुछ समय पहले पदमसुन्दर नामक विद्वान पुरुष यहां रहते थि। वह मेरे प्रिय मित्र थे। उन्होंने बनारस में अध्ययन किया था। एक बार एक ब्राह्मण पण्डित ने गर्व में स्वयं को पण्डित राज बताया उसे पदमसुन्दर - चुनौती देकर वाद-विवाद में हरा दिया। दुर्भाग्यवश कुछ समय बाद मुझे दुख में छोड़कर ने काल कर गये। मैंने उनकी सब लिपियाँ सम्भालकर महल
रखी हुई है। क्योंकि मैंने पाया कि उनका कोई शिष्य इन्हें सम्भालने क योग्य नहीं है। यह मेरी इच्छा है कि आप इस संकलन को मेरी पट समझकर स्वीकार करें : इस घटना की जानकारी हीरसौभाग्यकाव्य में भी मिलती है। नन्दविजय
ये विजयसैन सरि के शिष्य थे जब सरिजी ने अकबर के दरबार से बिहार कया तब नन्दविजयजी उनके दरबार में रहे। ये अष्टावधान साधते थे। विद्याविजयजी लिखते हैं कि "उन्होंने एक बार बादशाह की सभा में अष्टावधान
1 सूरीश्वर और सम्राट-कृष्णलाल वर्मा द्वारा अनुदित पेज 156 2. भानुचन्द्र गणिचरित- अगरचन्द्र भवरलाल माहटा पेज 11 3. तपागच्छ पट्टावली-कल्याणविजयजी पृष्ठ 231 4. सम्भवतया ये तैलंग ब्राह्मण पण्डित राज जगन्नाथ थे, जो अकबर के
समकालीन होने के साथ ही कुछ समय उनके दरबार में भी रहे थे । 5. भानुचन्द्रगणिचरित-अगरचन्द, भंवरलाल माहटा पेज 12 6. हीरसौभाग्यकाव्य-पण्डित देव विमलगणि सर्ग 14 श्लोक 91-97
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org