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बाबूपूरण चन्द्र जी नाहर एम. ए. बी. एल.एम. आर. ए. एस. महोदय के प्रहस्थ एक गुटके में प्राचीन कवित्त का भावार्थ इस प्रकार है-"सूरिजी को लन्दनार्थ सम्राट सामने गये उनके साथ उनकी प्रजा और अनुगामी अमीर उमराव भी थे । गुरू के चरणों में सम्राट ने दोनों हाथ जोड़कर प्रणाम किया। उनके उपदेश से सम्राट जैन धर्म का इतना आदर करने लगा कि उसके फलस्वरूप जिस किल्ले में गायें, कत्ल होती थीं, मर्गे, हिटले आदि जानवर मारे जाते थे अब उनका कत्ल होना बन्द हो गया। इतना ही नहीं सम्राट ने मांस-भक्षण जो पहले करता था, उसका त्याग कर दिया
बादशाह पर सूरिजी के प्रभाव का विवरण प्राचीन जैन लेख संग्रह में भी मिलता है।
बादशाह के दरबार में सूरिजी का इतना प्रभाव देखकर कुछ मौलवियों को ईष्र्या हुई इसीलिये उन्होंने कई बार ऐसे प्रसंग उपस्थिति किये । सूरिजी को नीचा दिखाया जा सके लेकिन सूरिजी ने हमेशा अपने चरित्र और बुद्धि वैभव द्वारा जैन शासन की रक्षा की । ऐसी कई चमत्कारिक घटनाओं में एक मुख्य घटना जिसका विवरण प्रायः सम्पूर्ण खरतरगच्छ साहित्य में मिलता है कि सूरिजी का एक शिष्य आहार के लिए जा रहा था। रास्ते में एक मौलवी के तिथि पूछने पर उसने भूल से अमावस्या के बदले पूणिमा बता दी। मौलवी ने कहा महाराज ! सुना है कि जैन साधू झूठ नहीं बोलते लेकिन यह तो सरासर झूठ है अब देखेंगे कि पूर्णिमा का चांद कैसे प्रकाशमान होगा, बाद में साधू को भी अपनी भूल का अहसास हुआ इसलिए उन्होंने उपाश्रय में जाकर सूरिजी को सारा वृत्तान्त बता दिया। इधर मौलवी ने भी सब जगह जहाँ तक कि सम्राट के दरबार तक में भी यह खबर पहुंचा दी कि जैन साधुओं के अनुसार आज पूर्णिमा का चांद उदय होगा । जैन शासन की अवहेलना न हो, इसलिए
1. युग प्रधान-श्री जिनचन्द्रसूरि-अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा पृष्ठ
116-117 2. श्री अकबरसाहिप्रदत्तयुग प्रधान पद प्रवरैः प्रतिवर्षासाठी
याष्टाहिकादिषा मासिकामारिप्रवर्तकः श्री पन्त (9) तीर्थोदीध मीनादि जीव रक्षक': श्री शत्रुन्जयादि तीर्थ करमोचकैः । सर्वत्र गोरक्षाकारकैः पंचनदीपीर साधकः युग प्रधान श्री जिनचन्द्र सूरिमिः । प्राचीन जैन लेख संग्रह, भाग 2, पृष्ठ 270
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