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12 शाही फरमान (अमारि घोषणा) लिखकर भेजे इन सात दिनों का वणन सूरीश्वर और सम्राट तथा भानुचन्द्र गणिचरित में भी मिलता हैं लेकिन दोनों में सूबों की संख्या है।
(युग प्रधान जिनचन्द्रसूरि के लेखक का कहना है कि मुलतान के सूबे का फरमान पत्र खो जाने से उसकी पुनरावृत्ति बाद में हुई शायद इसलिए सूरीश्वर और सम्राट तथा भानुचन्द्रगणिचरित में सूबों की संख्या 11 है )
सम्राट के अमारि फरमान प्रकाशित करने के अन्य राजाओं पर बहुत प्रभाव पड़ा उन्होंने भी अपने-अपने राज्य में किसी ने 15 दिन, किसी ने 20, किसी ने 25, किसी ने एक मास तो किसी ने दो मास की अमारि पालने का हुक्म दिया ।
इस तरह अपने उपदेशों से सम्राट को प्रभावित कर तीर्थों की रक्षा एवं अहिंसा प्रचार के लिए आषाढ़ी अष्टान्हिका एवं स्तम्भतीर्थीय जलचर रक्षक आदि कई फरमान प्राप्त किये: सूरिजी की योग्यता से प्रभावित होकर सम्राट मे उन्हें "युग प्रधान" पद से विभूषित किया । इन कार्यों के अलावा सम्राट मे जो और महत्व के कार्य किये वे इस प्रकार हैं---
1-प्रतिवर्ष में सब मिलाकर छः महीने पर्यन्त अपने समरस राज्य में जीव __हिंसा निषेध । 2-शत्रुन्जय तीर्थ का कर मोचन । 3- सर्वत्र गौ रक्षा का प्रचार।।
सूरिजी के उपदेश से बादशाह द्वारा किये गये जीव दया के कार्यों के बारे में नर्मदा शंकर बकराम भट्ट भी लिखते हैं कि 'जिमचन्द्रसूरजी के (धर्मोपदेश से प्रसन्न होकर अकबर ने आषाढ़ अष्टान्हिका अमारि फरमान निकाला और खम्भात के समुद्रों में एक वर्ष तक कोई व्यक्ति जल चर आदि जीवों की हत्या म करें, फरमान निकाला
1. युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि पेज 91.92 2. सूरीश्वर और सम्राट-कृष्णलाल वर्मा पेज 155-56 भानुचन्द्र
गणिचरित पृष्ठ 11 3. जैन साहित्यनों सक्षिप्त इतिहास- मोहन लाल दलीचन्द पृष्ठ 575 4. युग प्रधान गुर्वावलि खरतरगच्छ का इतिहास पृष्ठ 193 5. युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि पृष्ठ 113 6. खम्भात नो प्राचीन जैन इतिहास-नर्मदाशंकर त्रम्बकराम पृष्ठ 14-13
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