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बहत उन्नति होगी। जब भारतवर्ष के राजा जैन धर्मावलम्बी थे, तब जैनों की
या भी बहुत थी और सर्वत्र शान्ति विराजमान थी । अब भी यदि गुरूदेव की कृपा से अकबर के हृदय में जैन धर्म के सिद्धांत बैठ जायेंगे तो वर्तमान समय में आर्य प्रजा पर होने वाले अत्याचारों का विनाश हो जायेगा ।
area a जाकर सम्राट को जैन धर्म के सूक्ष्म तत्वों का दिग्दर्शन कराना अति उपयोगी होगा '
खम्भात श्रीसंघ के मना करने पर सूरिजी उन्हें समझाकर सुदी तेरस सम्वत् 1648 (सन् 1591) के दिन अहमदाबाद पहुंचे। यहां फिर उन्हें दो शाही फरमान मिले, जिसमें कर्मचन्द्र ने भी आग्रहपूर्वक वर्षाकाल और लोकापवाद की ओर ध्यान न देते हुए शीघ्र ही पहुंचने के लिए लिखा था सब सूरिजी ने संघ की अनुमति से वहां से बिहार किया और सिरोही में पयूषणों के आठ दिन बिताकर जालौन पहुंचे । वर्षाकाल जलौन में रहकर वहां से बिहार करें फाल्गुन शुक्ला वारस के दिन लाहौर नगर में प्रवेश किया । इस समय सूरिजी के साथ महोपाध्याय जयसोम, वाचनाचार्य कनकसोम, वाचन रत्न निधान और पण्डित गुणविनय प्रभृति आदि 31 साधू थे मन्त्रि कर्मचन्द्र ने जैसे ही बादशाह को सूरिजी के आने की सूचना दी बादशाह ने तुरन्त आकर सूरिजी को प्रसन्नतापूर्वक वन्दन कर कहा - "हे भगवन । आपको खम्भात से यहां आने में मार्ग श्रम तो हुआ ही होगा किन्तु मैंने भविष्य में जीवदया के प्रचार हेतु ही यहां आपको बुलाया है । अब आपने यहां पर पधार कर मेरे पर असीम कृपा की है। मैं अब आप से जैन धर्म का विशेष बोध प्राप्त कर जीवों को अभय दानादि देकर आपका खेद ( मार्ग श्रम) दूर करूंगा
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सूरिजी तो अपना कर्तव्य पालन करने अर्थात् अहिंसा का पूर्ण रूप से पालन करते हुए विश्व में स्नेह की नदियां बढ़ाने की भावना लेकर ही शहुशाह को उपदेश देने आये थे अतः अकबर की धर्म जिज्ञासुता देखकर सूरिजी को परम आनन्द हुआ । षे जिस उद्देश्य को लेकर खम्भात से चले थे उसे पूरा करने के लिए वादग्राह को ओजस्वी शब्दों में उपदेश देना प्रारम्भ किया। सूरिजी ने कहा आत्मा एक सत्य सनातन पदार्थ है, चैतन्य उसका लक्षण है । जब तक आत्मा अपने सद्गुणों में लीन रहती है तब तक उसमें अति शुद्धता बनी रहती है । जब
1. युग प्रधान जिनचन्द्रसूरि -- अगरचन्द्र भंवरलाल माहटा पृष्ठ 66-67 2. युग प्रधान गुर्वावलि - खरतरगच्छ का इतिहास पृष्ठ 193 3. युग प्रधान श्री जिनचन्द्रसूरि - अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 77
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