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अलबदायूनी में गाय, भैंस, भेड़, घोड़ा और ऊंट के मांस निषेध का वर्णन मिलता है।
जगद्गरू हीर में भी वर्णन मिलता है कि बादशाह ने मृत मनुष्य का द्रव्य कर के रूप में लेना निषेध कर दिया था पण्डित दयाकुशलमणि ने भी “लाभेदव रास" नामक ग्रन्थ में सूरिजी के उपदेश से बादशाह ने जो जीवदया के कार्य किये उनका वर्णन इस प्रकार किया है
"अकबर सहगुरू बकसई, ते सुणता ही अडविकसई । नगर ठठउ सिन्धु कच्छ, पाणि बहुला जिहां मल्छि । जिहां हुँनां बहुत सिंहार, ध्यन-ध्यन सहूं गुरू उपगार । च्यार मास को जाल न धालइ, विसेषईवली वर सालइ ।। गाय, बलद, भीसि, महिष जेह, कटी को ए न मारइ तेह ।
गुरू वनि को बन्दि न झालइ, मृतक केर कर टालइ ॥' "भानुचन्द्रगणिचरित में इस प्रकार उल्लेख मिलता है" दूसरे अवसर पर सूरिजी ने बादशाह को गायों, बैलों, भेंसों की हत्या को रोकने की आवश्यकता को बताया और गलत कानूनों को समाप्त करने का जो कि राज्यों को उन लोगों की सम्पत्ति हड़प करने के लिए बनाये गये थे जिनका कोई भी उत्तराधिकारी नहीं था तथा अपराधियों को सशर्त पकड़ने का अधिकार दिया गया था इस प्रकार के अनुचित कार्यों को न करने के लिए कहा सम्राट ने इन अनुचित कार्यों को रोकने के लिए फरमान जारी कर दिये
1. अलबबायूनी-डब्ल्यू. एच. लॉ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 388 2 जगद्गुरू हीर-मुमुक्षुभव्यानन्द जी पृष्ठ 111 3. लाभोदयरास-पण्डित दयाकुशलगणि (प्रेस-कापी) ढाल 127, 128,
129 4. "On another occasion the suri Convinced the emperror bf
the necessity of prohibition of the slaughter of cows, bulls. She buffaloes and he buffaloes, and of repealing the unedifying law which empouered the state to confiscate the property of those persons who died here less, and of capturing prisoners as hostages. Convinced of the harmful nature of these things, the emperor issued firmans prohibiting all these things. भानु वन्द्रगणिचरित-भूमिका लेखक अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 10
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