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सूरिजी ने अपने तर्कों से किया और बादशाह ने कहा कि जन सूर्य के दर्शन क बिना पानी भी नहीं पीते और सूर्य अस्त होने के बाद अन्न जल तब तक ग्रहण नहीं करते जब तक कि अगले दिन पुनः सूर्य के दर्शन न कर लें। सूर्य को मानने के पक्ष में सूरिजी ने यह कहा कि जब कोई व्यक्ति मर जाता है तो उसके सम्बन्धी या राजा मर जाये तो प्रजा तब तक भोजन नहीं करती जब तक उसका अग्नि संस्कार न कर दिया जाये
इसलिए जो सूर्य अस्त होने पर (रात्रि में ) भोजन करते मानने का दावा करते हैं उनकी यह बात कहां तक उचित है ? बुद्धिमान व्यक्ति सहज ही समझ सकता है ।
गंगा को मानने के सम्बन्ध में सूरिजी ने कहा जो गंगा को पवित्र मानने का दावा करते हैं वे उसके अन्दर नहाते हैं, कुल्ला करते हैं, क्या इस तरह वे गंगा मा का बहुमान करते हैं । इसी तरह वे उसे मानते हैं ? जैन तो गंगाजल का उपयोग fare प्रतिष्ठादि शुभ कार्यों में करते है। इस पर कोई भी बुद्धिमान व्यक्ति विचार कर सकता है । कि गंगाजी का सच्चा बहुमान जोनी करते हैं या ये शास्त्रार्थ करने बाले पण्डित ?
सूरिजी के तर्कों से सारी सभा चकित रह गई पण्डित निरुतर हो गये । बादशाह ने प्रसन्न होकर सूरिजी को " सूरसवाई" की पदवी से विभूषित कर दिया
हैं और सूर्य को
उसे कोई भी
उसके बाद सूरिजी ने बादशाह को उपदेश देकर जीवदया के अनेक कार्य करवाये । सूरिजी ने अकबर से कहा कि आपके राज्य में गो, वृषभ, महीष, महिषी की जो हिंसा होती है वह आप जैसे जगत उपकारी राजा को शोभा नहीं देती इसके अलावा मृत मनुष्य का द्रव्य ग्रहण करना तथा कैदी मनुष्यों का द्रव्य लेना भी आपकी कीर्ति के योग्य नहीं हैं । आपने तो जब " जजिया" जैसे कर को बन्द कर दिया तो उन वार्यो में आपको क्या हानि हो सकती है ? सूरिजी के इन प्रभाव पूर्ण वचनों से बादशाह ने उसी समय अपने अधिकारी देशों में उपर्युक्त छः कार्य बन्द करने की सूचना के आज्ञा पत्र सम्पूर्ण राज्य में भिजवा दिये ।
1. " अधाम धामधामेधं स्वचेतसि
यस्यास्तव्यसने प्राप्ते त्यजायो भोजभोदक |
श्री तपागच्छ पट्टावली - कल्याणविजयजी पृष्ठ 243
2, श्री सेन प्रश्न सार संग्रह - पण्डित शुभविजयगणि विरचित पृष्ठ 20
3. सूरीश्वर और सम्राट - पेज 164 तपागच्छ पट्टावली पृष्ठ 243
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