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________________ ( 80 ) इस घटना का समर्थन हीरविजयमूरिरास और हीरसौभाग्य काव्य में भी होता है । 4. उपाध्याय सिद्धिचन्द्र जो जब आचार्य हीरविजयसूरिजी ने भानुचन्द्रजी को अकबर के दरबार में भेजा । तब उनके साथ सुयोग्य शिष्य सिद्धिचन्द्र जी भी थे। बादशाह उनका भी बहुत आदर करता था। ये संस्कृत और फारसी के बड़े विद्वान थे अपनी योग्यता के बल पर अकबर के दरबार में अच्छी ख्याति पाई। उन्होंने अपने व्यक्तित्व के प्रभाव से बादशाह से कई कार्य करवाये जिनमें से कुछ का उल्लेख हम यहाँ करेंगे । आगरा में कुछ अजैनों ने जैनियों के विरुद्ध सम्राट के दिमाग में भरा। सम्राट ने एक आदेश द्वारा, वहां जो जैनियों का चिन्तामणि पार्श्वनाथ का मन्दिर बन रहा था, रुकवा दिया, मन्दिर लगभग आधा बन चुका था । तब सिद्धिचन्द्र जी ने अपने व्यक्तिगत प्रभाव से सम्राट द्वारा उस आदेश को निरस्त करवाया जिससे कुछ ही समय में मन्दिर का कार्य पूर्ण हुआ । 2 एक बार बुरहानपुर में बत्तीस चोर मारे जाने थे । उस समय दया भाव से प्रेरित होकर सिद्धिचन्द्र जी बादशाह की आज्ञा लेकर स्वयं वहां गये और उन चोरों को छुड़ाया था जयदास जपो नाम का एक लाड बनिया हाथी तले कुचल कर मारा जाना था उसको भी उन्होंने छुड़ाया हीरविजयसूरिशस में भी इसका वर्णन मिलता है * सौराष्ट्र में अजीज को-का के पुत्र खुर्रम शत्रुन्जय पहाड़ के नीचे जैन मन्दिर को नष्ट कर दिया पहाड़ी पर जो मन्दिर बना था उसे कुछ दुष्ट लोगों ने घेरकर उसे जलाने के लिए चारों ओर लकड़ियां लगा दी । विजयसेन सूरि ने सिद्धिचन्द्र जी को इस बात की सूचना दी। सिद्धिचन्द्र जी तुरन्त: सम्राट के पास पहुंचे और सारी स्थिति से अवगत कराया । सम्राट ने इसे रोकने के लिए शाही फरमान दिया, जिसे तुरन्त सौराष्ट्र भेज दिया गया । इस तरह से 1. हीरविजयसूरिरास पेज 183-84, हीरसौभाग्य काव्य सगं 14 श्लोक 285-86 2. भानुचन्द्र गणिचरित - भूमिका लेखक अगरचन्द्र भंवरलाल नाहटा पृष्ठ 43 3. सूरीश्वर और सम्राट - कृष्णलाल वर्मा पेज 157 4. ही रविजयसूरिरास - पण्डित ऋषभदास पेज 185 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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