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देकर अहिंसा का परम पुजारी बन गया '
बादशाह के ये सब कार्य कर देने पर सूरिजी को इनकी खुशखबर देने लिए शान्तिचन्द्र जी ने अकबर से गुजरात जाने की इजाजत मांगी। जाजत मिलने पर गुजरात की ओर बिहार किया। पट्टन पहुंचकर गुरुजी दर्शन कर उन्हें बादशाह के उन सब सुकृत्यों का हाल कह सुनाया और फरमान पत्र भी उनके चरणों में भेंट किये जिनमें "जजिया" कर के उठा देने का तथा वर्ष भर में छः महीने जितने दिनों तक जीव-वध के न किये जाने का हाल और हुक्म था । शान्तिचन्द्र जी के इन कार्यों से सूरिजी उन पर बहुत प्रसन्न हुए ।
3. उपाध्याय भानुचन्द्र जो
अकबर ने इबादतखाने में अपनी सभा के सदस्यों को पांच भागों में विभक्त किया था । पांचवे भाग के अन्तिम स्थान पर भानुचन्द्र नाम अंकित है । ये भानचन्द्र को ही भानुचन्द्र के नाम से जाना जाता है । 2
भानुचन्द्र जी की प्रखर बुद्धि देखकर हीरविजयसूरिजी ने उन्हें अकबर के बार में भेजा उन्हें आशा थी कि ये अपनी बुद्धि के बल पर अकबर को प्रभाव्रत करके जैन संघ को लाभ पहुंचायेंगे । सूरिजी की आज्ञा से भानुचन्द्र लाभपुर जाहीर) गये । वहां के जैन ग्रहस्थों ने उनका बहुत आदर किया और उन्हें एक पाश्रय में ठहरा दिया। यहां से अकबर के मन्त्रि अबुल फजल ने भानुचन्द्र जी अपने साथ राज दरबार में ले जाकर अकबर से भेंट कराई । भानुचन्द्र जी के
चीत करने के ढंग तथा बुद्धिमतापूर्ण उत्तरों से बादशाह बहुत प्रभावित हुआ। 1 कबर ने भानुचन्द्र जी से प्रतिदिन दरबार में आने की प्रार्थना की । बादशाह प्रार्थना स्वीकार कर भानुचन्द्र जी प्रतिदिन दरबार में आने लगे वहां उन्हें चित सम्मान दिया जाता था । बादशाह जब कभी आगरा या फतेहपुर छोड जाता तो भानुचन्द्र जी को भी साथ ले जाता था । अकबर के समय में जो तिष्ठा इन्होंने प्राप्त की वह जहांगीर के काल में भी निरन्तर बनी रही जिसका मन आगे यथास्थान किया जायेगा ।
अकबर ने भानुचन्द्र जी को अपने राजकुमारों सलीम और दीनदयाल की क्षा के लिए नियुक्त किया था ।
1. जगद्गुरु हीर- मुमुक्षुभध्यानन्द जी पृष्ठ 94-95
2. आइने अकबरी - एच. ब्लॉचमैन द्वारा अनुदित पृष्ठ 617
3. जैनों का उपासना करने का स्थान
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