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________________ ( 76 ) हीरविजय सूरिरास में कवि ऋषभदास लिखते हैं "जांगीरसा मे दानिआर, भणे जैन शास्त्र तिहां सार कहे अकबर गदाजी, मीर, भाणचन्द ते अवल फकीर "" स्वयं अकबर भी भानुचन्द्र जी से पढ़ा करता था -- इसका उल्लेख सिद्धचन उपाध्याय विरचित "भानुचन्द्र गणिचरित में मिलता है। है एक बार बीरबल ने अकबर से कहा "मनुष्य के काम आने वाले फल-फूल, घास, पात आदि सब पदार्थ सूर्य ही के प्रताप से उत्पन्न होते हैं, अन्धकार को दूर कर जगत में प्रकाश फैलाने वाला भी सूर्य इसलिए आपको सूर्य की आराधना करनी चाहिये ' बीरबल के अनुरोध से बादशाह सूर्य की पूजा करने लगा । बदायूनी ने भी लिखा है "दूसरा हुक्म ये दिया गया था कि सबैरे, शाम दोपहर और मध्य रात्रि में इस प्रकार दिन में चार बार सूर्य की पूजा होनी चाहिये ।” बादशाह ने भी सूर्य के एक हजार एक नाम जाने थे और सूर्याभिमुख होकर भक्ति पूर्वक उन नामों को बोलता था इसी तरह कई लेखकों ने लिखा है। कि बादशाह को यह नाम किसने सिखाये थे ? भानुचन्द्र गणिचरित में इस बात का वर्णन इस तरह से हैं- "एक बार अकबर ने दरबार में रहने वाले ब्राह्मणों से सूर्य के सहस्त्र नाम मांगे, परन्तु कहीं प्राप्त नहीं हो रहे थे । भाग्यवशात् किसी बुद्धिमान ने उन्हें वै नाम दे दिये और उन्होंने वे नाम अकबर के सम्मुख प्रस्तुत किये 1 अकबर उन्हें देखकर बहुत ही प्रसन्न हुआ उसने ब्राह्मणों से ऐसे व्यक्ति की मांग की जो इन नामों को उसे समझा सके । ब्राह्मणों ने उत्तर दियाकि इन नामों को ऐसा व्यक्ति ही समझा सकता है जिसने वासनाओं का दमम कर लिया हो, भूशायी हो तथा ब्रह्मचारी हो तब अकबर की दृष्टि मानुचन्द्र की की ओर गई, उसने कहा कि ऐसे व्यक्ति तो आप ही हैं, मुझे इन नामों को पढ़ाया कीजिये इस प्रकार भानुचन्द्र जी उन्हें प्रतिदिन सूर्य सहस्त्रनाम पढ़ाने जाया करते थे । कवि ऋषभदास अपने हीरविजयसूरि रास में लिखते हैं बादशाह अपने 1. हौरविजयसूरिरास - पण्डित ऋषभदास पृष्ठ 180 2. सूरीश्वर और सम्राट - कृष्णलाल वर्मा पृष्ठ 148 3. अलबदायूँनी डब्ल्यू. एच. लाँ द्वारा अनुदित भाग 2 पृष्ठ 332 4. भानुचन्द्रगणिचरित - भूमिका लेखक अगरचन्द्र भंवरलाल माहदा पृष्ठ 30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003201
Book TitleMugal Samrato ki Dharmik Niti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNina Jain
PublisherKashiram Saraf Shivpuri
Publication Year1991
Total Pages254
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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